उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी अपनी गुरु परम्परा एवं सनातन संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन के लिए एक विशेष स्थान दे रखा है। एक ओर योगी सरकार केंद्र सरकार के साथ साथ मिलकर उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए अग्रसर है, साथ ही वह सनातन संस्कृति की परम्पराओं को दिव्यता और भव्यता प्रदान कर उन्हें पुनर्जीवित करने का कार्य भी बड़े ही मनोयोग से कर रही है, जिसके लिए समस्त सनातन धर्मावलंबी इस सरकार का आभारी रहेगा। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पश्चात आपने अयोध्या की दीपावली तो देखी होगी, लाखों लाख दीयो के प्रकाश से सरयू के घाट उसी तरह प्रकाशमय थे जिस प्रकार त्रेता युग में राम के वनवास से लौटने के पश्चात थे, अयोध्या दुल्हन की तरह मानो संवर सी गई हो, शायद यही कारण रहा कि भगवान राम ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया और पिछले 450 से वर्षो से बहुप्रतीक्षित राम मन्दिर पुनर्निमाण का परम सौभाग्य इस सरकार के खाते में ही जोड़ दिया।
देवदीपावली के पावन अवसर पर काशी के घाटों को दीयों के प्रकाश से जो दिव्यता और भव्यता प्रदान की गयी थी, उसे भी प्र्रदेश की समस्त जनता ने देखा था, मानो अम्बर से तारों को तोड़कर काशी के घाटों पर किसी ने सजा दिया हो। आजादी के बाद तमाम सरकारें आयी और गयी शायद ही ऐसी कोई सरकार रहीं हो जिसे कुंभ के मेले का आयोजन करने का अवसर ना मिला हो किन्तु योगी सरकार द्वारा कुंभ मेले को जिस प्रकार दिव्यता और भव्यता प्रदान कर, कुंभ मेले को पुनः वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का जो सफल प्रयास किया गया वो और किसी सरकार द्वारा किया गया क्या ? राजनीतिक दलों के विचारों से ऊपर उठकर इस प्रश्न का जवाब देंगे तो उत्तर नहीं ही होगा। जिस किसी को भी इस बार के प्रयागराज की धरती पर कुंभ मेले में स्नान करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ और उसने वहां की सुव्यवस्थाओ को देखा उसने एक ही बात कही वाह! योगी जी वाह! इस कार्यक्रम की सफलता को योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक और आध्यात्मिक के मिले जुले सफल व्यक्तित्व से जोड़ कर देखा जा सकता है।
इसी कड़ी में योगी सरकार ने “रामलीला” मंचन की परम्परा जो प्रति वर्ष विलुप्त होती जा रही थी, उसे पुनः दिव्यता और भव्यता प्रदान करने का शुभ कार्य करने जा रही है। रामलीला मंचन के प्रारम्भ का निश्चित समय ज्ञात करना तो थोड़ा कठिन है किंतु सोलहवीं शताब्दी में बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित राम कथा “रामचरितमानस” के पश्चात रामलीला के मंचन के कार्य ने जोर पकड़ा। इसके पीछे का कारण शायद यह रहा होगा कि तुलसीदास जी ने जो राम कथा लिखी उसका नाम “रामचरितमानस” अर्थात राम के चरित्र को मन में धारण करिए अर्थात प्रत्येक सनातन धर्मावलंबी राम के चरित्र को मन में धारण करें जिससे एक उत्कृष्ट समाज का निर्माण हो सके और भारत पुनः विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो। किन्तु उस समय के समाज में सभी पढ़ें लिखे थे नहीं अर्थात सभी के द्वारा रामचरितमानस के पाठ को पढ़ना संभव नहीं था अतः उस समय के लोगों ने राम के चरित्र से जुड़ीं हुई बातों को समाज तक पहुंचाने के लिए “रामलीला” के नाटक मंचन का उत्कृष्ट माध्यम खोजा। एक समय था जब शारदीय नवरात्रि के आने का इंतजार पूरे देश में आयोजित होने वाली रामलीला मंचन के लिए किया जाता था। शारदीय नवरात्रि में रामलीला एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र होती थी। बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरुष, सभी को शारदीय नवरात्रि में होने वाली रामलीला की दर्शक दीर्घा में देखा जा सकता था। किन्तु पिछले कुछ एक दशकों से यह परम्परा प्रतिवर्ष विलुप्त होती जा रही है, ऐसा देखा जा सकता है। आजकल का युवा रामलीला तो दूर राम के नाम से भी दूर होता दिखाई देता है।
पहले के समाज की युवा पीढ़ी रामलीला को देखकर बड़ी होती थी और आजकल की युवा पीढ़ी जो आजकल की अश्लीलता से भरी हुई वेबसीरीज और फिल्मे देखकर बड़ी हो रही हो, इसका दुष्परिणाम समाज में घटित हो रही अमानवीय घटनाओं को देखकर लगाया जा सकता है। परन्तु पिछले सनातन परम्पराओं को पुनर्जीवित करने में किये गये इस सरकार द्वारा कार्य़ की तरह सरकार ने रामलीला मंचन को पुनः जीवित करने का जिम्मा उठा लिया है, जिसकी तैयारियों को देखकर लगता है मानो अयोध्या की “रामलीला” जल्द ही वैश्विक स्तर पर आकर्षण का केंद्र बनेगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में आगामी 17 से 25 अक्तूबर तक होने वाली फिल्मी सितारों की रामलीला को मंजूरी दे दी है। नौ दिन तक चलने वाली इस रामलीला में कोरोना को देखते हुए दर्शक तो नहीं होंगे लेकिन सोशल मीडिया के विभिन्न माघ्यम से इसका सजीव प्रसारण किया जायेगा।
रामलीला की आयोजक संस्था दिल्ली की है जो बहुत पहले से अयोध्या में रामलीला कराने के लिए प्रयासरत थी। इसे ‘अयोध्या की रामलीला’ नाम दिया गया है। रामलीला में सोनू राम की और कविता जोशी सीता की भूमिका में होंगे जबकि दारा सिंह के पुत्र बिंदू दारा सिंह हनुमान बनेंगे। रामानंद सागर के रामायण धारावाहिक में दारा सिंह ने हनुमान की भूमिका निभाई थी। अब इस रामलीला में उनके बेटे बिंदू हनुमान की भूमिका निभाने जा रहे हैं। गोरखपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद भोजपुरी स्टार रविकिशन भरत तो दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी अंगद बनेंगे जबकि रावण की भूमिका में शाहबाज खान और अहिरावण की भूमिका में रजा मुराद होंगे। सरकार द्वारा इसका लाइव प्रसारण तो होगा ही साथ ही अयोध्या में तमाम जगह पर एल० ई० डी भी लगाई जायेंगी। इस तरह के कार्यो से योगी आदित्यनाथ ने समस्त सनातन धर्मावलंबियों के ह्रदय में एक विशेष स्थान पा लिया है।
अभिनव दीक्षित
बांगरमऊ उन्नाव