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सनातन धर्म की परंपरा में दीपावली का महत्व।

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दीपोत्सव

यह रौशनी देख रहे हैं आप?

यह रौशनी मात्र दियों की नहीं है! यह रौशनी किसी धर्म की भी नहीं है! यह रौशनी संसार की सबसे पुरातन जीवन पद्धति की रौशनी है! यह सनातन की रौशनी है!

जब जब देश और धर्म की हानि होती है, हमारा सनातन अपने नायक पैदा करता है! त्रेता के श्रीराम और द्वापर के श्री कृष्ण! यह सनातन इतना धनी है कि इसकी कोख को अनेक बार लूटने का प्रयत्न किया गया, पर फिर भी यह मुस्कुराता रहा! इसने हर आंधी, हर तूफान को मुस्कुराते हुए पार किया और मुस्कुराते हुए खड़ा रहा!

आज भी जब नए जमाने के द्रोही मानसिकता वाले जब इसे नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं और कभी होली के रंगों तो कभी दीपावली के दियों के न जलाने की वकालत करते हैं तो यही सनातन मुस्कुराते हुए कहता है कि जब तुम पैदा हुए थे तो छठे दिन, गाजे बाजे के साथ तुम्हारा छठियार किया गया था! वहां भी सनातन था!

आज भले तुम कितने भी आधुनिक हो जाओ, पर जब किसी बड़े पद की शपथ लेने जाओगे तो भी “मुहूर्त” देखकर ही जाओगे! यहां भी सनातन है!

कोई भी बड़ी इमारत बनाओगे, नींव पूजन करके ही बनाओगे! सनातन से दूर होकर कहाँ जाओगे?

वो हमें आधुनिकता के नाम पर लाख बार कोसें…. पर अंत में उनका भी अंतिम संस्कार यही सनातन पद्धति ही कराती है और तब धर्म मुस्कुराता है!

वे मिटा देना चाहते हैं सनातन के हर एक निशान को!जानते हैं क्यों?

क्योंकि इसकी समृद्धि देखी नहीं जाती उनसे! इसका तेज सहन नहीं होता उनसे! और इसकी चमक में उनकी आंखें चौंधिया जाती हैं!

बस इसलिए वे हर दीपावली को तेल और दियों के नाम पर, हर होली को रंगों के नाम पर और हर छठ पर्व पर माथे तक लगे सिंदूर के नाम पर कोसते हैं, भौंकते हैं!

ऐसे लोग जो हमे हमारी परंपराएं छोड़कर गरीबों का भला करने को बोलते हैं….उन्हें हमारे गांव आना चाहिए और देखना चाहिए कि हर दशहरे में जब गांव के सबसे गरीब माली के आगे , गांव का राजा भी फूल के लिए हाथ पसारे खड़ा रहता है तो उस वक़्त अमीर गरीब का भेद मिट जाता है!

जब हर होली को सारा बैर भुलाकर समूचा गांव रंगों में डूब जाता है तब आती है असली सामाजिक बराबरी!

और जब हर दीपावली के समय में राजा,गांव का राजा नहीं रह जाता, बल्कि माटी के दिए बनाने वाला कुम्हार राजा बन जाता है और उसके दियों के लिए लाइन लग जाती है, तो मेरा गांव, मेरा देश, मेरा धर्म….सभी एक साथ मुस्कुराते हैं!

जब सारे गांव में एक ही कुम्हार के बने दिए जलते हैं, तो उस कुम्हार की मुस्कान देखने लायक होती है!

जब छठ के घाट पर सबसे निम्न जाति की व्रती माताओं का दौरा उठाने के लिए भी होड़ मच जाती है और बबुआन टोली के लोग भी आकर आदर के साथ उनके पैर छूते हैं, तो वहां पर असली नारी सशक्तिकरण होता है!

दीपोत्सव में भी.. वास्तव में दिये नहीं चमकते, मेरा धर्म चमकता है! मेरा सनातन चमकता है!

तो जो चिल्ला रहे हैं ,उन्हें चिल्लाने दीजिए! जो भौंक रहे हैं, उन्हें भौंकने दीजिए, क्योंकि ये वही लोग हैं जो रेस्टुरेंट में जाकर लेग पीस आर्डर करते हैं और बाहर आकर ज्ञान देते हैं कि दीपावली के पटाखों से कुत्ते डर जाते हैं!

मुझे लगता है कि दीपावली के पटाखों से कुत्ते नहीं डरते, ऐसे विधर्मी लोग डरते हैं! होली के रंगों से जानवरों की आंखे खराब नहीं होती, बल्कि इन धर्मद्रोहियों की आंखे चौंधिया जाती हैं!

और जब जब इनकी आंखें चौंधियाती हैं, मेरा धर्म मुस्कुराता है!

ये लोग लाख तोड़ने की कोशिश करें, पर सनातन नहीं मिटेगा!

हर युग में कभी राम, कभी कृष्ण तो कभी कल्कि आते रहेंगे!

कुछ न बचेगा, पर निश्चिंत रहिए कि धर्म बचा रहेगा! क्योंकि सावरकर जी ने लिखा है कि यदि सनातन धर्म को मुट्ठी में रखे रेत के कणों की तरह बिखेर दिया जाए, फिर भी इसमें वह ताकत है कि सारे कण पुनः जुड़ जाएंगे!

तो दीप जल रहे हैं! विधर्मियों के दिल भी जल रहे हैं!सनातन मुस्कुरा रहा है! आप भी मुस्कुराइए!

आशीष शाही

पश्चिम चंपारण, बिहार

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