भारतस्य स्वतंत्रतासि दिवस १५ अगस्त १९४७, इयम् केवलं एकम् दिवसम् नासीत् अपितु भारताय अविस्मरणीयम् दिवसम् अबनत् ! देशम् वर्षाणि आँगलानां परतंत्रताम् सहनस्य उपरांत अद्यस्येव दिवसं स्वतंत्रतासि स्वांसम् अलभत् स्म सहस्राणाम् जनानाम् बलिदानां उपरांतम् भारतम् स्वतंत्रताम् प्राप्तम् अभवत् स्म !
भारत की आजादी का दिन 15 अगस्त 1947, यह महज एक दिन नहीं था बल्कि भारत के लिए अविस्मरणीय दिन बन गया ! देश ने सालों अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद आज ही के दिन आजादी की सांस ली थी और हजारों लोगों की कुर्बानियों के बाद भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी !
तम् दिवसं प्रत्येकं भारतवासिन् मने देशस्य स्वतंत्रम् भवस्य अतिरिक्तेव प्रसन्नताम् आसीत् इदम् च् ते बहु माध्यमै: प्रकटयति स्म पूर्ण देशम् च् विशेषम् दिल्यायाम् अतिरिक्तेव उत्सवस्य परिवेशम् आसीत् !
उस दिन हर भारतवासी के मन में देश के आजाद होने की अलग ही खुशी थी और इसे वो कई माध्यमों से झलका रहे थे और पूरे देश खासकर दिल्ली में अलग ही जश्न का माहौल था !
लार्ड माउंटबेटन: स्व प्रकारे भारतस्य स्वतंत्रताय १५ अगस्तस्य दिवसं नियत अकरोत्, कुत्रचित इति दिवसं सः स्व कार्यकालाय बहु भाग्यशालीम् मान्यते स्म, अस्य पश्चस्य कारणमपि आसीत्, वस्तुतः द्वितीय विश्वयुद्धस्य कालम् १५ अगस्त १९४५ तमम् जयपानः मित्र राष्ट्रानां सम्मुखम् आत्मसमर्पणम् अकरोत् स्म येन ब्रिटेनाय वृहद विजयम् मान्यते स्म, अतएव माउंटबेटनाय १५ अगस्तस्य दिवसं विशेषम् आसीत् !
लार्ड माउंटबेटन ने निजी तौर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त का दिन तय किया, क्योंकि इस दिन को वह अपने कार्यकाल के लिए बेहद भाग्यशाली मानते थे, इसके पीछे की वजह भी थी, दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था जिसे ब्रिटेन के लिए बड़ी विजय माना गया था, इसलिए माउंटबेटन के लिए 15 अगस्त का दिन खास था !
लार्ड मॉन्टबेटन: जून १९४८ तमे स्वतंत्रताम् दास्यस्य वार्ताम् अकथयत् यस्य बहु विरोधम् अभवत् इति विरोधस्य उपरांतम् माउंटबेटनम् अगस्त १९४७ तमे स्वतंत्रताम् ददाय बाध्यम् भव्यते भारतम् च् स्वतंत्रताम् इति दिवसं अमिलत् !
लॉर्ड माउंटबेटन ने जून 1948 में आजादी देने की बात कही जिसका जमकर विरोध हुआ इस विरोध के बाद माउंटबेटन को अगस्त 1947 में आजादी देने के लिए बाध्य होना पड़ा और भारत को आजादी इस दिन मिली !
१६ अगस्तम् रक्त प्राचीरे आरोहयत् स्म ध्वजाम् !
16 अगस्त को लाल किले में फहराया गया था झंडा !
प्रत्येक वर्षम् स्वतंत्रता दिवसे भारतस्य प्रधानमंत्री रक्त प्राचीरेन ध्वजाम् आरोहयति, तु १५ अगस्त १९४७ तमम् इदृषिम् न अभवत् स्म, लोकसभा सचिवालयस्य एक शोध पत्रस्य अनुसारम् नेहरू: १६ अगस्त १९४७ तमम् रक्त प्राचीरेन ध्वजाम् आरोहयते स्म, वस्तुतः १४ अगस्त १९४७ तमस्य सायं एव वायसराय हाउस इत्यस्य उपरात् यूनियन जैक इतम् अवतिर्यते स्म !
हर साल स्वतंत्रता दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं, लेकिन 15 अगस्त 1947 को ऐसा नहीं हुआ था, लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था, हालांकि 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस के उपर से यूनियन जैक को उतार लिया गया था !
भारतम् वास्तवेव १९४७ तमम् स्वतंत्रताम् अभवत् असि तु हिन्दुस्तानम् पार्श्व स्वयंस्य राष्ट्रगानम् नासीत्, रवींद्रनाथ टैगोर: १९११ तमेव जन गण मनस्य अलिखयते स्म, १९५० तमे ताः राष्ट्रगानम् बन्यते यस्य उपरांतेन इति गीयते !
भारत भले ही 1947 को आजाद हो गया हो लेकिन हिन्दुस्तान के पास अपना खुद का राष्ट्रगान नहीं था, रवींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में ही जन गण मन को लिख दिया था, 1950 में वह राष्ट्रगान बन पाया जिसके बाद से इसे गाया जाता है !
जवाहर लाल नेहरू: ऐतिहासिकम् उद्बोधनम् ट्रिस्ट विद डेस्टनी इति अददात् स्म !
जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टनी दिया था !
१४ अगस्तस्य मध्यरात्रिम् जवाहर लाल नेहरू : स्व ऐतिहासिकम् उद्बोधनम् ट्रिस्ट विद डेस्टनी अददात् स्म, इति उद्बोधनम् पूर्ण विश्वम् अशृणुत् ! नेहरू: अयम् ऐतिहासिकम् उद्बोधनम् १४ अगस्तस्य मध्यरात्रिम् वायसराय लॉज ( वर्तमान राष्ट्रपति भवनम् ) इत्येन अददात् स्म !
14 अगस्त की मध्यरात्रि को जवाहर लाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टनी दिया था, इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना ! नेहरू ने यह ऐतिहासिक भाषण 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से दिया था !
इति उद्बोधनम् पूर्ण विश्वम् अशृणुत् तत्र १५ अगस्तस्य दिवसं लार्ड माउंटबेटन: स्व कार्यालये कार्य अकरोत् मध्य बेले पंडित नेहरू: तेन स्व मंत्रिमंडलस्य सूचीम् अप्रदत्तत् स्म तस्य च् उपरांते इंडिया गेट इत्यस्य पार्श्व प्रिंसेज गार्डेन इते एकम् सभाम् सम्बोधितम् अकरोत् !
इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना वहीं 15 अगस्त के दिन लॉर्ड माउंटबेटन अपने ऑफिस में काम किया दोपहर में पंडित नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी थी और उसके बाद में इंडिया गेट के पास प्रिंसेज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया था !
महात्मा गांधी: इति उत्सवे न आसीत् सम्मिलितम् !
महात्मा गांधी इस जश्न में नहीं थे शामिल !
१५ अगस्त १९४७ तमम् यत् राजधानी दिल्याम् स्वतंत्रतासि उत्सवम् मान्यन्ति स्म, तम् कालम् महात्मा गांधी: दिल्लीतः द्रुतम् पश्चिम बंगस्य नोआखले आसीत् ! तत्र सः हिन्दूनाम् मुस्लिमानाम् च् मध्य भवतः सांप्रदायिकम् हिंसाम् स्थागिताय अनशनम् करोति स्म ! गांधी: १५ अगस्त १९४७ तमस्य दिवसम् २४ घट्टम् उपवासम् कृत्वा मान्यते स्म !
15 अगस्त 1947 को जब राजधानी दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, उस वक्त महात्मा गांधी दिल्ली से दूर पश्चिम बंगाल के नोआखली में थे ! जहां वे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे ! गांधीजी ने 15 अगस्त 1947 का दिन 24 घंटे का उपवास करके मनाया था !
तम् कालम् देशम् स्वतंत्रताम् तर्हि अमिलत् स्म तु अस्य सहैव देशस्य विभाजनमपि अभवत् स्म, केचन मासै: देशे सततं हिन्दू मुस्लमानानां च् मध्य कलहम् भवति स्म इति अशांत परिवेशेन गांधी: बहु दुःखितः आसन् !
उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो गया था, कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे और इस अशांत माहौल से गांधीजी काफी दुखी थे !
नेहरू: सरदार वल्लभभाई पटेल: च् गाँधीम् पत्रम् लिखित्वा अबदत् स्म तत १५ अगस्तम् देशस्य प्रथम स्वाधीनता दिवसं मानयिष्यति, अस्य उत्तरे पत्रम् लिखितम् महात्मा: अकथयत् स्म तत यदा बङ्गे हिन्दूम् मुस्लिमम् च् एकम् द्वितीयस्य प्राणम् हरन्ति,इदृशे अहम् उत्सवम् मान्यताय कीदृषिम् आगच्छामि ! अहम् कलहम् निरोधाय स्व प्राणम् दाष्यामि !
नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने गांधी को पत्र लिखकर बताया था कि 15 अगस्त को देश का पहला स्वाधीनता दिवस मनाया जाएगा, इसके जबाव में पत्र लिखते हुए महात्मा ने कहा था कि जब बंगाल में हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं ! मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा !
स्वतंत्रतासि उपरांत प्रथमदा नेहरू: रक्त प्राचीरे ध्वजारोहणं अकरोत् अस्य वृहद कारणम् केवलं अयमपि आसीत् तत तम् काले दिल्याम् रक्त प्राचीरेन विशालं प्रतीकात्मकम् च् स्थाने महत्वपूर्णम् किमपि द्वितीय अऔपनिवेशिकम् भवनम् न आसीत्, अतएव रक्त प्राचीरे त्रिवर्णम् आरोहयत् !
आजादी के बाद पहली बार नेहरू ने लाल किले पर ध्वजारोहण किया इसकी बड़ी वजह शायद यह भी थी कि उस दौर में दिल्ली में लाल किले से विशाल और प्रतीकात्मक तौर पर महत्वपूर्ण कोई दूसरी गैर औपनिवेशिक इमारत नहीं थी, इसलिए लाल किले पर तिरंगा फहराया गया !