30.1 C
New Delhi

हिंदी दिवस : हिंदी भाषा की महत्व, गर्व से कहो हम हिंदी भाषी है

Date:

Share post:

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की पंक्तियां हैं – “निज भाषा उन्नति कहे, सब उन्नति को मूलबिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूलविविध कला शिक्षा अमित ज्ञान अनेक प्रकारसब देसन से लैस करहूं भाषा माहि प्रचारअर्थात निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही समस्त उन्नतियों का मूल आधार है, मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है।  विभिन्न प्रकार की ज्ञान, कलाएं, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार के ज्ञान सभी देशो से जरूर प्राप्त करने चाहिए परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिए। परन्तु इन महत्वपूर्ण पंक्तियों को समझने में भारत ने देरी की है अपितु दुनिया के रूस, जर्मनी, जापान, चीन आदि बड़े देशों ने इन पंक्तियों को भली भांति समझा और अपनी मातृभाषा को सर्वोच्चता प्रदान की।परन्तु लार्डमैकाले द्वारा थोपी गयी शिक्षा नीति का प्रभाव भारत की हिन्दी भाषा पर भी पड़ा और भारतवासियों के मन में उनकी अपनी ही भाषा के प्रति कमतरी का भाव उत्पन्न हो गया। दुनिया में शायद भारत ही एक ऐसा देश होगा जहां अपनी मातृभाषा बोलने वालों को कमतर और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को ज्ञानी और समझदार समझा जाता है, इससे ज्यादा दुर्भाग्य का विषय कुछ  हो नही सकता, पर यह सब शायद इसलिए संभव हो पाया क्योंकि आज की युवा पीढ़ियों को हिन्दी भाषा के ज्ञान और उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का असल ज्ञान नहीं है।

उन्हे ज्ञात कराने की आवश्यकता है कि हिंदी वर्णमाला में उपस्थित एक एक वर्ण का वर्णमाला में पर्याप्त स्थान का महत्व है। पूरी दुनिया में हिन्दी उन गिनी-चुनी भाषाओं में एक है जिसे जैसा लिखा जाता है वैसा ही पढा जाता है, जबकि अंग्रेजी में ऐसे तमाम शब्द है जो लिखे कुछ और जाते हैं और पढ़ें कुछ और “14 सितंबर 1949” काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारत के संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है “संघ की राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी संघ के राजकीय प्रायोजनो के लिए प्रयोग होने वाले अंको का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा “यह निर्णय 14 सितंबर 1949 को लिया गया था, इसी कारण 14 सितंबर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान सभा द्वारा लिए गये इस फैसले का जो हिन्दी भाषायी राज्य नहीं थे उन्होंने विरोध किया और इसी विरोध के चलते अंग्रेजी को भी राजकीय कामकाज की भाषा में प्रयोग करने का प्रावधान किया गया। इन विरोध के कारण ही पिछले 70 वर्षो में हिन्दी को जो सम्मान मिलना चाहिए था वो नहीं मिला और इसके साथ ही हम अभी तक  हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में वास्तविकता प्रदान करने में असफल है । इस दिवस को एक औपचारिकता मात्र रूप न देने की बजाय एक अभियान का रूप देने की आवश्यकता है और आज की युवा पीढ़ी को उनकी अपनी मातृभाषा की विशालता को समझाने की आवश्यकता है । जिस दिन वो हिन्दी को भली भांति जान लेंगे उसके एक एक वर्ण को वैज्ञानिकता की दृष्टि से भी खरा पायेंगे उसी दिन से ही उनके मन में हिन्दी के प्रति जो कमतरी का भाव है उसे भुलाकर अपनी मातृभाषा पर गर्व करेंगे। हिन्दी वर्णमाला में 11स्वर और 41 व्यंजन कुल मिलाकर 52 वर्ण है। हिन्दी वर्णमाला के वर्गीकरण पर प्रकाश डाले तो स्वर को दो भागों में ह्रस्व स्वर एवं दीर्घ स्वर में बांटा गया है । वही व्यंजन को पांच वर्ग (ध्वनियो के आधार पर ) क वर्ग (कंठ ध्वनि), च वर्ग (तालव्य ), ट वर्ग (मूर्धन्य), त वर्ग ( दंत) एवं प वर्ग (ओष्ठय ) व्यंजन के रूप में, साथ ही साथ वायु के आधार पर अल्पप्राण एवं महाप्राण के रूप में, घर्षण के आधार पर अघोष एवं सघोष के रूप में, अंतस्थ व्यंजन, ऊष्म व्यंजन, लुंठित व्यंजन आदि वर्गो में बांटा गया है। हिन्दी वर्णमाला के वर्गीकरण पर गहनता से प्रकाश डाले तो ज्ञात होता है कि एक एक वर्ण मानो अपनी परिभाषा कह रहा हो अपितु इसके भारत की नई युवा पीढ़ी हिन्दी को अन्य भाषाओं से कमतर आंकती है। यह कमतरी का भाव तभी तक संभव है जब तक युवा पीढ़ी में हिन्दी भाषा की अज्ञानता है जिस क्षण अज्ञानता मिटेगी, हिन्दी के पास इतनी सामर्थ्य है कि वह स्वयं अपना सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेगी। पूरी दुनिया में हिन्दी चौथे नम्बर की भाषा है जो बोली वो समझी जाती है, भारत के अलावा दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां हिन्दी बोली, लिखी व समझी जाती है उनमें प्रमुख हैं नेपाल, फिजी, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका,  बांग्लादेश, सिंगापुर आदि।पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया पर हिन्दी की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है। भारत के कई  राजनेताओं ने विश्व पटल पर हिन्दी का मान सम्मान बढ़ाया है, जिसमें स्मृतिशेष अटल बिहारी वाजपेई एवं सुषमा स्वराज जी का योगदान सर्वश्रेष्ठ है। आइये हिंदी दिवस पर हम सभी भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा कही गयी बात को जाने और उसे साकार रूप प्रदान करें उन्होंने कहा था – ” जिस देश को अपनी भाषा एवं अपने साहित्य का गौरव नहीं है वह उन्नत नहीं हो सकता ” इस हिन्दी दिवस पर हम सभी  भारतवासी डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा कही गयी बात को मानकर  हिंदी को गौरव बढ़ाने के लिए अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें।

अभिनव दीक्षित

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

How the Modi Government Crushed Maoist Terrorism in India

The Modi government has made significant strides in eliminating Maoist terrorism, which once posed a major internal security...

Why Israeli Military vows to stop Gaza-bound ‘antisemitic’ Greta Thunberg?

Israel has ordered its military to prevent a Gaza-bound aid boat, the Madleen, from reaching its destination. The...

Canadian Khalistani groups planning aggressive protests against PM Modi’s G7 visit, all set to honour Indira Gandhi’s Assassins

During Prime Minister Narendra Modi’s upcoming visit to Canada for the G7 summit in Kananaskis, Alberta, from June...

Shameless Bangladesh Army ‘Warns’ India against ‘Forced’ Deportation of Illegal Bangladeshi Infiltrators

A top officer of the Bangladesh Army on Monday said that "pushing in" of undocumented people by Indian...