31.1 C
New Delhi

अगर कांग्रेस का संप्रदायिक हिंसा बिल कानून बन जाता तो बंगलुरू में मुस्लिम दंगाई आज़ाद घूमते और हिन्दू जेल में कैद।

Date:

Share post:

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में 11 अगस्त की रात भारी हिंसा हुई। इस दौरान हालात को काबू करने के लिए पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी। बेंगलुरु में भड़की इस हिंसा में एसीपी समेत 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। घटना बेंगलुरू के डीजे हल्ली और केजी हल्ली पुलिस थाना इलाके में हुई। दोनों इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। बेंगलुरू में धारा 144 लगाई गई है।

बवाल सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट शेयर करने को लेकर हुई। और यह सब हुआ एक फेसबुक पोस्ट के कारण। एक फेसबुक पोस्ट पर जल उठा बेंगलुरु। दरअसल हुआ यह कि कांग्रेस विधायक श्रीनिवास मूर्ति के भतीजे ने फेसबुक पर मुस्लिमों के पैंगबर साहब के बारे में कथित भड़काऊ पोस्ट किया था।

यह पोस्ट एक हिंदू विरोधी पोस्ट के जवाब में की गई थी पर हिंदू विरोधी पोस्ट को किसी ने ज्यादा तूल नहीं दिया पर उसके जवाब में की गई पोस्ट ने बैंगलुरू को जला दिया। हालांकि, बाद ये पोस्ट डिलीट भी कर दी गई। बावजूद इसके कथित भड़काऊ पोस्ट को लेकर बड़ी संख्या उपद्रवियों ने विधायक श्रीनिवास मूर्ति के बेंगलुरू स्थित आवास पर हमला कर दिया और जमकर तोड़फोड़ की।

इस दौरान आगजनी भी की गई। इतना करके भी भीड़ शांत नहीं हुई और भीड़ विधायक श्रीनिवास मूर्ति के घर और पूर्वी बेंगलुरु के डीजे हल्ली पुलिस स्टेशन के बाहर एकत्र होने लगी। दर्जनों की संख्या में पहुंचे लोगों ने विधायक के घर पर हमला बोल दिया। थाने पर तोड़फोड़ की और फिर थाने को आग के हवाले कर दिया गया।

बवाल बढ़ता देख आख़िर में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. इस फायरिंग में दो लोगों की जान चली गई. पुलिस ने आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले विधायक के भांजे को गिरफ़्तार कर किया है. हिंसा की इस घटना के ख़िलाफ़ कर्नाटक के अमीर-ए-शरीयत ने भी शांति की अपील की है. राज्य के गृह मंत्री बासवराज बोम्मई ने कहा है कि हिंसा में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा. बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने अपील की है कि बैंगलुरु में भी यूपी हिंसा की भांति दंगाईयों की संपत्तियां जब्त करके सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई हो।

यूपी दंगों के बाद दंगाईयों की पहचान कर उसकी संपत्तियों की कुर्की की गई और अब बैंगलुरू में भी यही सब करने की तैयारी है। ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा कानून दंगा भड़काने वालों पर कड़ी कारवाही करने की छूट देता है।

यहां चौंकाने वाली बात यह है कि अगर इस कानून को बनाने में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चलती और कानून उनके हिसाब से बनता तो आज तस्वीर कुछ और होती। उनका कानून लागू होता तो हर सजा बहुसंख्यकों को मिलती और इस देश में बहुसंख्यक कौन हैं यह किसी से छुपा नहीं है।

इस अधिनियम के तहत अगर कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति का मकान खरीदना चाहता और वह मना कर देता तो इस अधिनियम के अन्तर्गत वह हिन्दू अपराधी घोषित हो जाता। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया था। यदि किसी

बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ तो वह भी अपराध माना जाता। अब मानसिक कष्ट की परिभाषा कहां तक है यह बतान की जरूरत नहीं। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जाता।

यानि अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जाता।

उस विधेयक में साफ कहा गया था कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही बताता है। सट यह भी है कि हिन्दू ने कभी भी गैर हिन्दुओं को सताया नहीं उनको संरक्षण ही दिया है। उसने कभी हिंसा नहीं की, वह हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है।

आज हिंदुत्व का पक्ष लेने वाली कांग्रेस तत्कालीक सरकार के साथ मिलकर सोनिया गांधी हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती थीं। उनकी नजर में हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है। यही नहीं महिलाओं को भी अपनी सोच से नुकसान पहुंचाने की तैयारी में था यह विधेयक।

किसी भी महिला के शील पर आक्रमण होना, किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता। यह विधेयक एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।

दरअसल 2005 में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा एक विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था। इसका नाम सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक था।

इस विधेयक को देखकर साफ पता चलता है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया था।

साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में लाए जा रहे इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलता बल्कि हिंसा के शिकार रहे हिन्दू समाज तथा इसके विरोध में आवाज उठानेवाले हिन्दू संगठनों का दमन करना आसान हो जाता। इसके अतिरिक्त यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप कर देश के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करता।

अगर यह कानून सोनिया गांधी की मंशानुरूप लागू हो जाता तो इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जाती जिसको पाटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं होता। विधेयक अगर पास हो जाता तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जाता।

देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पाता। हिन्दू जब अपने आप को कहीं से भी संरक्षित नहीं पाता तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो जाता और शायद आज भारत की बहुतायत आबादी हिंदू तो कदापि नहीं रहती। इससे भी भयंकर स्थिति तब होती जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको संरक्षण देती और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जाती। इस विधेयक के कुछ ही तथ्यों का विश्लेषण करने पर ही इसका भयावह चित्र सामने आ जाता है।

इसके बाद आपातकाल में लिए गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना मुश्किल होता। देश के तत्कालीक प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक उनके इस कथन का ही एक नया संस्करण था। इसके तहत किसी राजनीतिक विरोधी को भी इसकी आड़ में कुचलकर असीमित काल के लिए किसी भी जेल में डाला जा सकता था।

मजे की बात यह है कि एक समानान्तर व असंवैधानिक सरकार की तरह काम कर रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बिना किसी जवाब देही के सलाह की आड़ में केन्द्र सरकार को आदेश देती थी और सरकार दासत्व भाव से उनको लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहती।

जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। जब इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से कल्पना की जा सकती है। आखिर ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया दस्तावेज उनके चिन्तन के विपरीत कैसे हो सकता है।

जिस समुदाय की रक्षा के बहाने से इस विधेयक को लाया गया था इसको इस विधेयक में समूह का नाम दिया गया। इस समूह में कथित धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त दलित व वनवासी वर्ग को भी सम्मिलित किया गया। अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद का रूप धारण कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाद किस प्रकार …

Neelam Shukla

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

Modi Govt initiates Massive Crackdown on foreign-based Khalistani terrorists spreading anti-India hate

A day after a big crackdown on Gurpatwant Singh Pannun, Khalistani terrorist and head of the banned separatist...

This is How Justin Trudeau RUINED Canada’s ties with India for the sake of Khalistani votes

Canada and India are friends and have close relationship for many decades. However, the PM Justin Trudeau, by...

Bold and Blunt : India calls Canada a SAFE HAVEN for Terrorists

With India and Canada in the middle of a worsening standoff over the killing of Khalistan separatist Hardeep...

The ‘Nari Shakti Vandan Act’ was hailed as a revolutionary action by Chief Minister Yogi Adityanath.

"India's great democracy has become proud in the true sense," the chief minister Yogi Adityanath said on his...