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चीन को रिटर्न गिफ्ट

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चीन भी समझ चुका था कि अब भारत को रोकना मुश्किल है तो उसने पहला ‘प्रयोग’ डोकलाम में किया। चीन को लगा था कि जिस तरह उसने अपने सैनिक साजो सामान का हौवा खड़ा किया हुआ है इससे भारत डर जाएगा लेकिन भारत ने डोकलाम पर चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। चीन को यथास्थिति बहाल करनी ही पड़ी।

मुंबई का नाम कभी बंबई हुआ करता था फिर बदलकर मुंबई हो गया लेकिन इंदौर का एक इलाका है जो आज भी उसी पुराने नाम से जाना जाता है, नाम है बंबई बाज़ार।
भारत के लगभग हर छोटे बड़े शहर में बने ‘मिनी पाकिस्तानों’ की तरह ही बंबई बाज़ार भी एक ‘मिनी पाकिस्तान’ है। फिल्मों में दिखाए जाने वाले जुए, शराब के अड्डों की ही तरह यहाँ भी कभी वही सब हुआ करता था, इस इलाके में एक गुंडे बाला बेग का बड़ा आतंक और दबदबा था। 
बाला बेग का पिता करामात बेग पंजाब का एक पहलवान था जो किसी कुश्ती में भाग लेने इंदौर आया था और उसके दाँवपेंचों से प्रभावित होकर इंदौर के महाराजा ने उसे इंदौर में ही बसने को कहा था।

बाप के ठीक उलट बाला बेग दूसरे ही दाँवपेंचों में उस्ताद हो चला था उसने बंबई बाज़ार में चार पाँच मकानों को एक साथ जोड़कर नीचे तहखाना बना लिया था, जहाँ वो जुए का अड्डा चलाता था साथ ही अन्य आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता था। तहखाने में भाग निकलने के इतने रास्ते थे कि अच्छे अच्छे चकरा जाएँ। 
बाला बेग का इलाके में ख़ौफ़ इस क़दर था कि पुलिस भी वहाँ जाने में डरती थी। कभी पुलिस इलाके में घुसने की कोशिश भी करती तो इलाके की महिलाएँ पुलिस का रास्ता रोक लेतीं और जुआ खेल रहे लोग भाग निकलने में कामयाब हो जाते, आसपास के घरों से पुलिस के ऊपर पत्थरबाजी शुरू हो जाती।
समय के साथ बाला बेग राजनीतिक दलों से जुड़ गया, चुनाव भी लड़ लिया और शहर के इस इलाके के लिए नासूर बनता चला गया। हफ्ता वसूली, ज़मीनों, मकानों पर अवैध कब्जे, बिना कारण मारपीट, धौंस डपट के कारण इलाके के लोग ख़ासकर बहुसंख्यक समुदाय उसके निशाने पर रहता था। 

सन 1988 में एक आईपीएस अधिकारी अनिल कुमार धस्माना ने बतौर एसपी कमान संभाली, सितम्बर 1991 में बंबई बाज़ार में कुछ झड़प हुई और खुद एसपी अनिल कुमार धस्माना पूरी फोर्स के साथ वहाँ जा पहुँचे। जो अब तक होता आया था वही धस्माना के साथ भी हुआ। उनका रास्ता रोक लिया गया, तभी एक मकान से किसी ने एक बड़ा सिलबट्टा (मसाले पीसने का पत्थर) धस्माना के ऊपर फेंका।
धस्माना के साथ खड़े उनके गनमैन छेदीलाल दुबे ने धस्माना को बचाने के लिए उन्हें धक्का दिया और वो सिलबट्टा सीधा छेदीलाल दुबे के ऊपर आ गिरा, गंभीर घायल दुबे की मृत्यु हो गई।
इस घटना से अनिल कुमार धस्माना बुरी तरह व्यथित और क्रोधित हो उठे और उन्होंने “ऑपरेशन बंबई बाज़ार” शुरू कर दिया। पूरे इलाके को सील कर दिया और जबरदस्त पुलिस फोर्स के साथ इलाके एक एक घर में दबिश देना शुरू कर दी। 
बाला बेग का जुए और अवैध कारोबार को धस्माना ने नेस्तनाबूद कर दिया, उसके मकानों को तुड़वा दिया गया। खुद धस्माना ने दरवाजा तोड़कर बाला बेग को गिरफ्तार किया था। बाला बेग के आतंक और अवैध कारोबार का अंत हो गया था।
1991 की इस घटना के आज लगभग 29 साल बाद भी बंबई बाज़ार में कोई दूसरा बाला बेग फिर पैदा नहीं हुआ। 
चीन ने दुनिया भर में अपने सस्ते उत्पादों से डंका बजा रखा था। सीमावर्ती देशों को कब्जाने की चीन की मंशा दुनिया से छिपी नहीं थी। उसकी चाहत दुनिया को अपनी मुठ्ठी में कर लेने की थी। कई देशों की अर्थव्यवस्था में चीन दखल दे चुका था। भारत को घेरने के लिए नेपाल पकिस्तान के साथ मिलकर कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को अंजाम दे रहा था और इसके लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा था।
1962 में भारत से युध्द करने और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा हिंदी चीनी भाई भाई का नारा देने और एक बड़ा इलाका चीन को सौंप देने के बाद से चीन भारत पर लगातार दबाव डालने और आसपास के इलाके कब्ज़े में लेने की कोशिशें करता रहा।
देश पर सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता के बाद जो बड़ी बड़ी गलतियां जानबूझकर की थी उनमें से एक ये भी है कि उसने कभी किसी भी पड़ोसी देश से नियंत्रण रेखा कभी स्पष्ट ही नहीं की।
जिस तरह देश में आतंकवादी हमले होने और उनमें पाकिस्तान का स्प्ष्ट हाथ होने पर भी पाकिस्तान को केवल डोज़ियर भेजने और कड़ी निंदा के सिवाय कुछ नहीं किया उसी तरह कांग्रेस शासित सरकारों ने चीन की दादागिरी के आगे भी हमेशा घुटने टेकने का ही काम किया यहाँ तक कि 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय चीन ने भारत की लगभग 640 वर्ग किलोमीटर ज़मीन हथिया ली और कठपुतली प्रधानमंत्री इतनी बड़ी घटना पर भी खामोश रहे। 
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आज चीन की स्थायी सदस्यता भी नेहरू की ही देन है जो उन्होंने तश्तरी में परोसकर चीन को दी थी।
कांग्रेस जब तक सत्ता में रही चीन की सीमा से सटा भारत का उत्तर पूर्व (नॉर्थ ईस्ट) का इलाका हमेशा उपेक्षित ही रहा या कहें उपेक्षित रखा गया। ना सड़कें, ना पुल, ना हवाई अड्डे, ना रेलवे। 
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता उपहार में दिए जाने के बाद ये भी चीन को भारत की तरफ से वर्षों तक दिया जाने वाला एक उपहार था और चीन के लिये ये एक ‘परमानेंट गिफ्ट वाउचर’ था जिसे चीन अक्सर भुनाता रहता था।
मई 2014 में जब भारत में सत्ता बदली और लंबे समय बाद एक पूर्णतया कांग्रेस मुक्त सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी। सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने सबसे पहले इसी उपेक्षित नॉर्थ ईस्ट के इलाके को संवारना शुरू कर दिया। 
बहुत तेजी से नॉर्थ ईस्ट के हालात बदलने लगे, बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू कर दिए गए। सीमा से सटे जिन इलाकों पर चीन किसी भी तरह के निर्माण कार्यों को होने नहीं देता था, आपत्ति लेता था उन सभी निर्माण कार्यों को मोदी सरकार चीन की धमकियों, आपत्तियों के बावजूद जारी रखे हुए था।
चीन भी समझ चुका था कि अब भारत को रोकना मुश्किल है तो उसने पहला ‘प्रयोग’ डोकलाम में किया। चीन को लगा था कि जिस तरह उसने अपने सैनिक साजो सामान का हौवा खड़ा किया हुआ है इससे भारत डर जाएगा लेकिन भारत ने डोकलाम पर चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। चीन को यथास्थिति बहाल करनी ही पड़ी।
चीन की ही तरह कांग्रेस भी ये मंसूबे पाले बैठी थी कि 2019 में भाजपा चुनाव हार जाएगी या अपने बलबूते सरकार नहीं बना पाएगी। लेकिन इस बार पहले से भी ज़्यादा बहुमत के साथ सरकार बनने के साथ ही इन मंसूबों पर भी पानी फिर चुका था।
एक बार फिर मोदी सरकार चीन से सटी अपनी सीमाओं को मज़बूत करने में लगी थी। इसी बीच चीन ने अपनी अति महत्वकांक्षा के चलते दुनियाभर की अर्थव्यवस्था को कब्जाने की नीयत से अपने शहर वुहान से ‘कोरोना वायरस’ को दुनियाभर में फैला दिया और इस दौरान अपनी चालें भी चलता रहा।
भारत भी जब कोरोना से जूझ रहा था तब इसी का फायदा उठाकर चीन ने फिर सीमा पर तनाव पैदा करने का ‘प्रयोग’ शुरू कर दिया। सीमा पर तनाव बढ़ते ही चीनी अधिकारियों के साथ गुपचुप मीटिंग करने और एक तथाकथित एमओयू पर हस्ताक्षर करने वाली कांग्रेस और गांधी परिवार ने घड़ियाली आँसू बहाने और मोदी सरकार पर निशाने साधना शुरू कर दिए।
भारत चीन की झड़पों में जहाँ भारत के लगभग 23 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए वहीं अपुष्ट खबरों के आधार पर चीन के हताहत हुए सैनिकों का ये आँकड़ा 180 से ऊपर का है, जिसे हमेशा की तरह चीन छिपा रहा है। 

हेलीकॉप्टरों की भारी तादाद में हताहत सैनिकों की तलाश बताती है कि चीन को ‘परमानेंट गिफ्ट वाउचर’ के बदले अब तगड़ा ‘रिटर्न गिफ्ट’ दिया गया है।
चीन की दादागिरी, आतंक, धौंस डपट, बिना कारण मारपीट और अवैध कब्जे के कारोबार को खत्म करने की शुरुआत हो चुकी है, साथ ही चीनी उत्पादों पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने और चीनी उत्पादों के बहिष्कार की सरकार और व्यापारियों की मुहिम ने ड्रैगन के अभेद्य किले में सेंध लगा दी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर कहा है कि देश के सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पाकिस्तान के बाद अब चीन भी इस बात को अच्छे से समझ ले कि “ये नया भारत है घर में घुसकर मारता है

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