मूकानां सभायां किं ज्ञानम् अन्वेषयसि !
अज्ञातम् मार्गे किं राहम् अन्वेषयसि !
अन्धकानाम् नगरे किं परिचयम् अन्वेषयसि !
शब्दनाम् चक्रे किं अरित्रम् अन्वेषयसि !
भवान् जानीति सर्वम् अज्ञानीम् वनित्वा तिष्ठ,
अपमिश्रितम् काले किं मानवाः अन्वेषयसि !
गूंगो की सभा में क्यों ज्ञान खोजते हो !
अन्जानी डगर पर क्यों राह खोजते हो !
अंधों के शहर में क्यों पहचान खोजते हो !
शब्दों के भंवर में क्यों पतवार खोजते हो !
आप जानते हैं सब अन्जान बनके बैठो,
मिलावटी समय में क्यों इंसान खोजते हो !
समाजवादम् धर्मनिर्पेक्षम् शब्दम् संविधानात् निरसनस्य याचिकाम् सर्वोच्च न्यायालये प्रस्तुतम् अकरोत् ! इदम् याचिकाम् द्वय जनौ विधिवेत्ता विष्णु शंकर जैनस्य माध्यमेन प्रस्तुतम् अकरोत् ! याचिका कर्ता बलराम सिंह: करुणेश कुमार शुक्ल: च् कार्येण विधिवेत्ता स्तः !
समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द को संविधान से हटाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है ! यह याचिका दो लोगों ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है ! याचिका कर्ता बलराम सिंह और करुणेश कुमार शुक्ला पेशे से वकील हैं !
समाजवादम् धर्मनिर्पेक्षम् वा शब्दम् प्रस्तावने द्वाचत्वारिंशत् संविधानम् संशोधनस्य माध्यमेन ३ जनवरी १९७७ तमस्य असम्मिलत् ! यदा इदम् शब्दम् प्रस्तावने सम्मिलयतु तेन कालम् देशे आपात्कालम् आसीत् ! सदने चर्चा न अभवत् स्म, इदम् अचर्चास्य स्वीकृतम् अभवत् स्म !
समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन के जरिये 3 जनवरी 1977 को जोड़ा गया ! जब ये शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए उस समय देश में आपातकाल था ! सदन में बहस नहीं हुई थी, ये बिना बहस के पास हो गया था !
धर्मनिर्पेक्षताम् ?
धर्मनिरपेक्षता ?
भवान् सर्वम् धर्मनिर्पेक्षतेन पूर्ण रूपम् पर्चितम् भवित्वा जानयन्तु ! वास्तविके धर्म निर्पेक्षताम् पश्चिमे उत्पन्नम् अभवत् विचारम् अस्ति ! तत्रैवस्य विशेषम् ऐतिहासिकम् परिस्थितिनाम् कारणेन इदम् शब्दम् अस्तित्वे आगतः ! यूरोपे पोप नृपस्य च् मध्य भवितुम् शक्ति विभाजनमैव धर्मनिर्पेक्षताम् इति कथयतु, यथातत् भारते इदानीं न अस्ति ! भारतीय सन्दर्भम्, परिस्थितिनाम् इतिहासम् च् अन्यानि अस्ति ! भारतस्य अस्तित्वम् तम कालेन अस्ति, यदा यूरोपे राष्ट्र राज्यस्य जन्ममपि न अभवत् स्म ! भारतीय सन्दर्भे धर्मनिर्पेक्षतस्य अर्थ किं अस्ति, हिन्दूनाम् विरोधम् अल्पसंख्यकानां च् अतीव समर्थनम् इति !
आप सभी धर्मनिरपेक्षता से भलीभांति परिचित होकर जाने ! असल में धर्म निरपेक्षता पश्चिम में पैदा हुआ विचार है ! वहां की खास ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से ये शब्द अस्तित्व में आया ! यूरोप में पोप और राजा के बीच हुए शक्ति विभाजन को ही धर्मनिरपेक्षता कहा गया, जबकि भारत में ऐसा नहीं है ! भारतीय संदर्भ, परिस्थितियां और इतिहास अलग हैं ! भारत का अस्तित्व उस वक्त से है, जब यूरोप में राष्ट्र राज्य का जन्म भी नहीं हुआ था ! भारतीय संदर्भ में सेक्युलरिज्म का मतलब क्या है, हिंदुओं का विरोध और अल्पसंख्यकों का अतिवादी समर्थन !
समाजवादम् ?
समाजवाद ?
समाजवादे भवतः मतम् अन्यानि भव शक्नोन्ति, अयम् मम मतम् अस्ति तत् वयं अधुनैव अयम् निर्धारितेव न कृत शक्नोति तत् समाजवादम् किमस्ति ? किं समाजवादस्य अर्थम् राज्यवादम् अस्ति पुनः अस्य अर्थम् अस्ति संसाधनानां समाजीकरणम् वा ! भारते समाजवादस्य यावतपि हिस्साम् सन्ति, दलानि सन्ति, तस्मिन् कश्चितस्य पार्श्वपि स्पष्टताम् न सन्ति ! कश्चितम् ज्ञातम् न तत् संसाधनानां समाजीकरणम् कस्य प्रकारम् कृतमस्ति ! समाजवादम् सोवियत संघे उत्तपन्नम् अभवत् एकः प्रतिक्रियावादीम् विचारधाराम् अस्ति ! यस्यपि द्वाचत्वारिंशत् संविधानम् संशोधनस्य उपरांत समविधाने असम्मिलित् ! समाजवादस्य विचारधाराम् व्यक्त कृते एकः बहूत्तमम् शब्दम् भारतीय रीते अस्ति,अंत्योदयम् ! अंत्योदयस्य अर्थम् अस्ति अंतिम व्यक्तिम् प्रथमिक्ताम् !
समाजवाद पर आपके मत अलग हो सकते हैं, यह हमारा मत है कि हम अभी तक यह निर्धारित ही नहीं कर सके हैं कि समाजवाद है क्या ? क्या समाजवाद का मतलब राज्यवाद है या फिर इसका मतलब है संसाधनों का सामाजीकरण ! भारत में समाजवाद के जितने भी धड़े हैं, पार्टियां हैं, उनमें किसी के पास भी स्पष्टता नहीं है ! किसी को पता नहीं कि संसाधनों का समाजीकरण कैसे करना है ! समाजवाद सोवियत संघ में पैदा हुई एक प्रतिक्रियावादी विचारधारा है ! इसे भी 42वें संविधान संशोधन के बाद संविधान में जोड़ा गया ! समाजवाद की विचारधारा को व्यक्त करने वाला एक बेहतर शब्द भारतीय परंपरा में है,अंत्योदय ! अंत्योदय का मतलब है अंतिम आदमी को प्राथमिकता !
बी आर अम्बेडकर: संविधानम् निर्माण काले अपि धर्मनिर्पेक्षस्य समाजवादस्य वा प्रस्तावस्य विरोधम् अकरोत् स्म !
बी आर अंबेडकर ने संविधान निर्माण समय पर भी धर्मनिरपेक्ष व समाजवाद के प्रस्ताव का विरोध किया था !
अकथयते तत् संविधानसभाया: सदस्यम् के टी शाह: त्र्यदा धर्मनिर्पेक्षम् ( सेकुलर ) शब्दम् संविधाने सम्मिलितस्य प्रस्तावम् अददात् स्म, तु त्र्यदा संविधानसभाम् प्रस्तावम् निरस्तम् अकरोत् स्म ! के टी शाहः प्रथमाद १५ नवम्बर १९४८ तमम् धर्मनिरपेक्षशब्दम् सम्मिलित कृतस्य प्रस्तावम् अददात् यत् तत् निरस्तम् अभवत् ! द्वयदा २५ नवम्बर १९४८ त्र्यदा ३ दिसम्बर १९४८ तमम् शाहः प्रस्तावम् अददताम् तु संविधानसभाम् तेनापि निरस्तम् कर्त्तुम् अकथयत् तत् समाजवादम् धर्मनिरपेक्षम् च् सिद्धांतम् केवलं सर्कारस्य कार्यमेव संयमित अबिभृते !
कहा गया है कि संविधान सभा के सदस्य के टी शाह ने तीन बार धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) शब्द को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन तीनों बार संविधान सभा ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था ! के टी शाह ने पहली बार 15 नबंवर 1948 को सेकुलर शब्द शामिल करने का प्रस्ताव दिया जो कि खारिज हो गया ! दूसरी बार 25 नवंबर 1948 और तीसरी बार 3 दिसंबर 1948 को शाह ने प्रस्ताव दिया लेकिन संविधान सभा ने उसे भी खारिज करते हुए कहा कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत सिर्फ सरकार के कामकाज तक सीमित रखा जाए !
समाजवादम् धर्मनिरपेक्षम् वा शब्दम् किं असम्मिलत् !
समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द क्यों जोड़ा गया !
यथा तत् उपरि भवान् अपठ्यते, समाजवादम् धर्मनिरपेक्षम् वा शब्दम् सम्मिलतस्य अर्थम् केवलं स्व मतदातानि आकर्षितस्य प्रयत्नम् मात्र अस्ति, एतस्मिन् ते जनानाम् हितम् ध्याने अबिभृत् यत् विशेषरूपेण हिन्दूधर्मेण प्रेमम् न कुर्वन्ति, केवलं द्वेषेव तस्य एकमात्रम् उद्देश्यम् सन्ति ! कांग्रेसम् अस्य लाभम् मिलितेपि, कांग्रेसम् तर्हि सदैवेन हिन्दूनाम् उत्पीडनम् कृतेन द्रुतम् न अभवत्, पालघरे साधुनाम् हननम् असि राम मन्दिरस्य विरोधम् वा, अन्य दलमपि अस्य लाभम् उत्तिष्ठेनवंचितम् न अरहत्, अन्य दलमपि हिन्दूनाम् बहु उत्पीडनित्वा सत्ताधीशम् अभव्यते, केवलं भाजपेव एकम् इदानीं दलम् अरहत् यत् हिन्दूनाम् स्व सह गृहीतस्य अचलत् !
जैसा कि ऊपर आप पढ़ चुके हैं, समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ने का मतलब सिर्फ अपने वोट बैंक को रिझाने की कोशिश मात्र है, इसमें उन लोगों का हित ध्यान में रखा गया है जो विशेष रूप से हिन्दू धर्म से प्रेम नहीं करते हैं, केवल नफरत ही उनका एकमात्र उद्देश्य है ! कांग्रेस को इसका लाभ मिलता भी रहा है, कांग्रेस तो हमेशा से हिंदुओं का उत्पीड़न कराने से दूर नहीं हुई, पालघर में साधुओं की हत्या हो अथवा राम मंदिर का विरोध, अन्य दल भी इसका लाभ उठाने से वंचित नहीं रहे, अन्य दलों ने भी हिंदुओं का खूब उत्पीड़न कर सत्ताधीश होते रहे, केवल भाजपा ही एक ऐसी पार्टी रही जो हिंदुओं को अपने साथ लेके चली !
करुणेश शुक्ल: यत् याचनाम् सर्वोच्च न्यायालयस्य सम्मुखम् अबिभृत् तत् याचनाम् उचितम् अस्ति यतः हिन्दूनाम् उत्पीडनम्,हिन्दू धर्मस्य विरोधम् अयम् तदा अंतम् भविष्यति, यदा इदानीं शब्दानि संविधानात् निःसर्ष्यते, सम्प्रति शब्दम् आगमिष्यति तत संविधानस्य पुनेन संशोधनम् अक्रियते, भो भ्रातरः स्व स्व लाभाय देशे कतिदा संविधाने संशोधनम् अभवत्,अयम् कश्चित नव वार्ताम् न भविष्यति, देशहिते एकदा पुनेन संशोधनम् अकृत्ये ! वस्तुतः अयम् सम्प्रति सर्वोच्च न्यायालयम् निर्णयम् कृतं तत किं अयम् शब्दम् संविधाने भविष्यति न वा !
करुणेश शुक्ल ने जो मांग सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी है वह मांग जायज है क्योंकि हिंदुओं का उत्पीड़न,हिन्दू धर्म का विरोध यह तभी समाप्त होगा, जब इन शब्दों को संविधान से निकाल दिया जाएगा, अब शब्द आएगा कि संविधान का फिर से संशोधन किया जाए, अरे भाई अपने अपने फायदे के लिए देश में कई बार संविधान में संशोधन हुए हैं यह कोई नई बात नहीं होगी, देश हित में एक बार फिर से संशोधन किया जाए ! खैर यह तो अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि क्या यह शब्द संविधान में होंगे या नहीं !
Very nice