क्रिकेट – एक ऐसा खेल जिसे बहुत कम देश खेलते हैं लेकिन जहाँ भी खेला जाता है वहाँ बेहद लोकप्रिय खेल है। भारत जैसे देश में क्रिकेट के दर्शक दीवानगी की हर सीमा को पार कर जाते हैं। भारत में क्रिकेट एक जुनून की तरह है। खिलाड़ियों से कहीं ज़्यादा भावनाओं का ज्वार, रोमांच मैदान में और अपने घरों, दफ्तरों, होटलों में मौजूद दर्शकों के बीच उठा हुआ होता है।
टेस्ट क्रिकेट की आधिकारिक शुरुआत मार्च 1877 में हुई थी और पहला मैच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेला गया था। क्रिकेट खिलाड़ियों और विशेषज्ञों की दृष्टि में टेस्ट ही असली क्रिकेट है क्योंकि क्रिकेट बहुत ही धैर्य, तकनीक और रणनीतियों का खेल है। क्रिकेट की किताबों के सारे बेहतरीन शॉट्स, फील्डिंग की जमावट टेस्ट क्रिकेट में ही देखने को मिलती है।
लेकिन टेस्ट क्रिकेट में जहाँ ये तमाम खूबियाँ हैं वही एक बात क्रिकेटप्रेमियों को अखरती थी कि टेस्ट क्रिकेट पाँच दिनों तक खेला जाता है इतना धैर्य हर क्रिकेट प्रेमी में नहीं था। दूसरे इतने लंबे चलने के बावजूद अधिकतर मैचों के निर्णय नहीं आते थे और वो ड्रॉ हो जाते थे। यही वजह थे कि टेस्ट क्रिकेट उबाऊ लगने लगा था और इसके लिए दर्शक जुटाना मुश्किल हो चला था।
इसी को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट संस्था (आईसीसी) ने 1971 में एक दिवसीय क्रिकेट की शुरुआत की। इसे पहले 60 ओवरों का और बाद में 50 ओवरों का सीमित खेल कर दिया गया और इस क्रिकेट के इस स्वरूप ने बहुत जल्दी लोकप्रियता हासिल कर ली। एक ही दिन में निर्णय, रोमांच का उतार चढ़ाव, आखरी दम तक संघर्ष ने एक दिवसीय क्रिकेट को क्रिकेट प्रेमियों का पंसदीदा खेल बना दिया।
क्रिकेट विश्वकप ने इसमें और बढ़ोतरी की, लेकिन लंबे समय तक लोकप्रिय रहने के बाद एक दिवसीय क्रिकेट भी लोगों को उबाऊ या दिन भर खर्च करने वाला खेल लगने लगा और लोग एकदिवसीय क्रिकेट से भी बोर होने लगे उन्हें कम समय और ज़्यादा रोमांच चाहिए था। क्रिकेट ने फिर एक बार अपना स्वरूप बदला और अब वो T20 का फटाफट क्रिकेट बन गया।
कुछ घंटों की ताबड़तोड़ बैटिंग और एक दिवसीय जैसा ही रोमांच इसमें मिलने लगा तो T20 भी लोकप्रियता के सोपान चढ़ता चला गया। अब नतीजे और जल्दी मिलने लगे और रोमांच भी अपनी सारी हदें पार करता चला गया।
जब देश 1947 में स्वतंत्र हुआ तब जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सरकार बनाकर देश का संचालन करने, नीतियाँ निर्धारित करने की शुरुआत हुई। इसके बाद लंबे समय तक देश की सत्ता पर कांग्रेस ही सत्ता पर काबिज़ रही लेकिन देश की जनता के मन में सरकार की और सरकारी कामों की छवि कुछ ऐसे बन गई कि सरकारी काम बहुत समय लेते हैं, उबाऊ होते हैं, अधिकतर सरकारी कामों, फाइलों पर कुछ फैसला ही नहीं होता। भ्रष्टाचार की अमरबेल बन चुकी सरकारी व्यवस्थाओं ने लोगों में सरकार और सरकारी कामों की छवि नकारात्मक कर दी थी।
जनता इन सबसे ऊब चुकी थी, उसे लगता था कि उसकी सुनने वाला, परवाह करने वाला कोई है नहीं और इस सड़ी गली, भ्रष्टाचार युक्त व्यवस्था को उसने अपनी नियति मान लिया था। देश पर कांग्रेस पार्टी ने ही सबसे अधिक समय तक शासन किया और कांग्रेस पर केवल नेहरू गांधी परिवार ने ही शासन किया।
लोकतंत्र की बात करने वाली और लोकतंत्र की कसमें खाने वाली कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा नुकसान देश को, देश की जनता को, अर्थव्यवस्था को पहुँचाया। अपने निजी लाभ के आगे और सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस ने हर वो काम किया, हर वो चाल चली जिससे उसे ये सब हासिल हो सकता था।
2004 से 2014 के यूपीए के कालखंड में देश की जनता को भ्रष्टाचार का सबसे वीभत्स रूप सामने दिखाई दिया। न्यूज़ चैनलों और मोबाइल क्रांति ने कांग्रेस के हर घोटाले को जन जन तक पहुँचा दिया था। जनता बेहद आक्रोश में थी और बदलाव चाहती थी।
2014 के आम चुनावों में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री अपना उम्मीदवार प्रस्तुत किया, चूँकि मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए बहुत लोकप्रियता हासिल कर ली थी सो जनता के बीच मोदी अनजान चेहरा नहीं थे। मोदी ने अपने वाक्चातुर्य, जनता को विश्वास में लेने की अदा और ताबड़तोड़ चुनावी रैलियाँ करते हुए लाखों की भीड़ जुटाकर ही चुनावों के नतीजों का आभास दे दिया था।
2014 में पूर्ण बहुमत की लंबे समय की सरकार बनाने के बाद मोदी ने तेजी से फैसले लेने शुरू किये, व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की शुरूआत की। विश्व में भारत की साख तेजी से सुधरने लगी और तमाम देशों ने भारत को वो महत्व देना शुरू किया जो इसके पहले कभी नहीं मिला था। जनता से किये अपने वादों पर तेजी से काम करना शुरू किया। अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने वर्षों से लंबित OROP, जीएसटी, बांग्लादेश सीमा विवाद, युद्धक विमान और अन्य सैन्य साजोसामान की खरीदी, ट्रिपल तलाक को कानून बनाने जैसे अनेक महत्वपूर्ण फैसले ताबड़तोड़ लिए, कालेधन पर प्रहार करते हुए नोटबन्दी जैसा साहसिक कदम उठाया।
हर संसद अधिवेशन में कांग्रेस शासित सरकारों द्वारा किये गए कारनामों को देश की जनता के सामने रखा। किसी बल्लेबाज की तरह मोदी संसद और चुनावी सभाओं में बेहरमी से कांग्रेस पर टूट पड़ते थे और पहली बार देश की अधिकांश जनता संसद की कार्रवाई को क्रिकेट की ही तरह दीवानगी के साथ देखने लगी।
उरी, पुलवामा में हुए आतंक हमलों का बदला पाकिस्तान में बैठे आतंकियों पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक करके लिया। सड़े गले कानूनों को हटाने, सरकारी तंत्र को तेज गति से करने की दिशा में कदम उठाए।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल को देश की जनता ने सराहा और 2019 में दुबारा पहले से भी ज़्यादा प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार पर अपने विश्वास की मोहर लगा दी।
शायद मोदी इसी बहुमत की राह देख रहे थे और पिछले कार्यकाल में की गई समस्त तैयारियों को मूर्तरूप देने का समय आ चुका था। मई 2019 में दुबारा सत्ता हासिल करने के बाद मोदी ने देश की जनता को सबसे बड़ा तोहफा दिया जिसकी माँग देश की जनता लंबे समय से करती चली आ रही थी और भाजपा भी हर बार अपने घोषणपत्र में इसका ज़िक्र करती आ रही थी।
5 अगस्त 2019 का वो ऐतिहासिक दिन था जब देश की संसद में सरकार ने धारा 370 और धारा 35A हटाने की घोषणा की। तमाम विपक्षी दलों और मोदी विरोधियों के लिए जहाँ ये बहुत बड़ा आघात था वहीं देश की अधिकांश जनता इस फैसले से फूली नहीं समा रही थी।
इसके बाद वो हुआ जिसके लिए कई शताब्दियों तक साधु संतों, रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दीं, अपमानित हुए, प्रताड़ित हुए। देश के सबसे बड़े विवादित स्थल की लगातार 50 दिनों तक ऐतिहासिक सुनवाई देश की सर्वोच्च अदालत में होती रही और अंततः नवम्बर 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना निर्णय हिंदुओं के पक्ष में सुनाया और राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया।
सिर्फ यही नहीं वर्षों से लंबित CAA NRC पर भी फैसला लिया गया और इसे भी तुरंत प्रभाव से लागू करने की क़वायद शुरू कर दी गई। जिसे लेकर विपक्ष ने एक खास वर्ग को भड़काया और देश भर में आंदोलनों और हिंसक घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया। दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में सड़क बंद करके उस पर अनशन करने का देश में अपने तरह की अनोखी घटना थी।
फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा को देखते हुए पूरे षड्यंत्र के साथ दिल्ली में भयानक दंगे करवाये गए जिसमें दिल्ली में शासन कर रही आम आदमी पार्टी और उसके कुछ नेताओं के नाम भी साफ तौर पर उभरकर सामने आए।
प्रधानमंत्री ने एक बार अपने संबोधन में कहा भी था कि – “ये संयोग नहीं प्रयोग है” मोदी के पहले कार्यकाल में भी विपक्ष खासकर कांग्रेस द्वारा इसी तरह अनेक सरकार विरोधी यहाँ तक कि देश विरोधी गतिविधियों के अनेक प्रयोग किये गए। मोदी की ईमानदार छवि को धूमिल करने के अनेकानेक प्रयास हुए।
कोरोना संकट के समय भी मोदी ने दो महीनों तक देश को लॉक डाउन करने जैसा कठिन निर्णय देश की जनता की रक्षा के लिये लिया। इस संकट में भी कांग्रेस ने हर वो चाल चली जिससे वो मोदी सरकार को बदनाम कर सकती थी। चीन मामले में भी बजाय देश के साथ खड़े रहने के कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार चीन के साथ खड़े होते नज़र आए।
लेकिन इन सबसे विजयी होकर मोदी 5 अगस्त 2020 को 29 वर्षों की अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने के बाद ही अयोध्या जा रहे हैं। मात्र 6 वर्षों में मोदी ने वो करके दिखा दिया है जो देश की जनता को और सिस्टम में बैठे लोगों को असंभव ही दिखता था।
मोदी ने उबाऊ राजनीति को देश का सबसे चर्चित विषय बना दिया है। देशहित में ताबड़तोड़ फैसले लेकर इस मिथक को तोड़ा है कि “इस देश का कुछ नहीं हो सकता” राजनीति के सारे स्थापित नियमों को मोदी ने तोड़ दिया है और नए नियम स्थापित कर दिए हैं।
विश्व में भी मोदी ने देश का नाम ऊँचा किया है। आज भारत की बात पूरा विश्व सुनता और मानता है। एक प्रधानमंत्री क्या क्या कर सकता है ये मोदी ने करके दिखाया है। कोरोना संकट ना होता तो देश की अर्थव्यवस्था और सुदृढ होनी ही थी और राम मंदिर का भूमि पूजन भी और भव्य तथा व्यापक स्तर पर होता।
बकौल मोदी – अभी तो ये सब “सैम्पल” हैं यानी आने वाले समय में देश और भी कई ऐतिहासिक फैसलों का साक्षी होगा।
फ़िलहाल न केवल पूरा देश बल्कि पूरा विश्व दिल थामे 5 अगस्त की उस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहा है जब प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण का भूमि पूजन आरंभ होगा। उस दिन करोड़ों आँखों से अश्रुधाराओं का वो सैलाब फूटेगा जो इसके पहले विश्व ने कभी नहीं देखा होगा।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी – वो शख़्स जिसने राजनीति को क्रिकेट से भी ज़्यादा दिलचस्प बना दिया है।
While I appreciate work done by Modi ji, still, a lot need to be done on ‘ease of doing business’ and ‘eradication of curruption’ at multiple levels.
Let’s keep trying and hoping for the best.