सन 1673…रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र! यह वह समय था जब सदियों से भारत भूमि पर व्याप्त अत्याचारी मुगल शासन को एक मराठा शूरवीर राजा ने दक्षिण से उखाड़ फेंका था और दिल्ली में बैठे औरंगजेब की चूलें हिलाकर रख दीं थीं! उस महान राजा का नाम था शिवाजी शाहाजी भोंसले और उसकी राजधानी थी रायगढ़ दुर्ग!
उसी दुर्ग के बुर्जों पर पर कई सैनिक मिलकर भारी भरकम तोपें तैनात कर रहे थे! इसी क्रम में एक बड़ी भारी तोप उठाते हुए दो सैनिकों का हाथ फिसला और तोप का मुंह भी बुर्ज से फिसलने लगा! सैनिक घबरा गए! उन कुछ ही क्षणों में यह घटना इतनी तेजी से हो रही थी कि किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें! यदि तोप नीचे गिर जाती तो बुर्ज तो टूटता ही, तोप भी पहाड़ियों से नीचे गिरकर खाई में जाता और नष्ट हो जाता!
हर एक सैनिक युद्धों में तोप के महत्व से भी वाकिफ था और अपने महाराज के तोपों और आयुधों के प्रेम से भी! तोप हाथ से फिसलता जा रहा था और सैनिक उसे किसी भी कीमत पर गिरने नहीं देना चाहते थे! उनके कपड़े पसीने से लथपथ हो गए थे, फिर भी वह तोप सम्भाले नहीं सम्भलता था!
कुछ ही क्षणों में जब लगा कि अब तोप हाथ से छूटने ही वाला है ,कि तभी एक मावला(मराठा) सैनिक अपनी पुरी तेजी से दौड़ा और तोप के एक सिरे की ओर रस्सी फँसाते हुए उसे अपने पूरे दम से पीछे की ओर खींचा! फिर भी तोप इतनी वजनदार थी कि उसने उस सैनिक का पैर कुछ देर तक बुर्ज की छत पर फिसलने पर मजबुर कर दिया!
सैनिक की मांसपेशियां उभर आई थीं! उसके मस्तक में खिंचाव आ गया था, पर उसने पूरे दम से तोप को रोक रखा था! तोप कुछ क्षण तक आगे की ओर खिसकता रहा, और फिर “हर हर महादेव” का नारा लगाते हुए उस मावले ने जैसे ही अपना आखिरी दम लगाया, बुर्ज से तोप का फिसलना रुक गया!
तोप खाई में गिरने से बच गई! यह सबकुछ बड़ी तेजी से हुआ था! तबतक कुछ और सैनिक दौड़ते हुए आए और उसकी मदद करनी चाही! पर उस वीर ने उन्हें हाथ उठाकर रोक दिया!
“इसने मुझे ललकारा है! मैं अकेला ही इससे निपटूंगा!” उस सैनिक ने मदद को आए सैनिकों से कहा और अकेले ही आगे बढ़कर, उस भारी तोप को अपने कंधों पर उठा लिया और बुर्ज की ओर चल पड़ा!
सारे सैनिक मुंह फाड़े उसका पराक्रम देख रहे थे! “हर हर महादेव” के नारे गूंज रहे थे और वह मर्द मावला कंधे पर कई मन की तोप रखे, आगे बढते जा रहा था! उसकी तनी हुई नसें, खींची हुई मांसपेशियां और आँखों का तेज देखकर चकित हुए सब उसकी प्रशंसा कर रहे थे!
उसने तोप को बुर्ज पर लाकर रख दिया और अपनी देह को मोड़ा!” चर्र”की आवाज के साथ उसकी बलिष्ठ मांसपेशियां कड़क उठीं!
“एक भी तोप नुकसान होने का मतलब है, स्वराज्य का नुकसान! और अपने जीते जी हम ये कैसे होने देते!” उस वीर ने हाथों को झाड़ते हुए कहा और अगले ही क्षण “जय भवानी’ और “हर हर महादेव” के नारों से वह बुर्ज गूंज उठा!
भवानी के इस सपूत का नाम था- कोंडाजी फ़र्ज़न्द!
कोंडाजी फ़र्ज़न्द! छत्रपति शिवाजी महाराज का एक सरदार! उनका विश्वासपात्र! बाघ के समान चपल और चीते की फुर्ती लिए वह मराठा मावला स्वराज्य पर अपनी जान न्योछावर करने को हरदम तैयार रहता था!
शिवाजी महाराज के दाहिने हाथ तानाजी मालुसरे का शिष्य और उनका दायां हाथ था कोंडाजी फ़र्ज़न्द! अफजल वध से लेकर लाल महल में घुसकर शाइस्ता खान की उंगलियां काटने की मुहिम तक, हर एक योजना में तानाजी के साथ साथ कोंडाजी फ़र्ज़न्द जरूर शामिल हुआ करता था!
सन 1673…शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की बात चल रही थी! तैयारियां लगभग आरंभ भी हो चुकी थीं! पर महाराज को एक ही कमी अखरती थी, और वह ये थी कि लगभग ढाई सौ किले स्वराज्य के अधीन हैं, परन्तु एक अति महत्वपूर्ण किला अबतक स्वराज्य में शामिल नहीं हो सका था, और वह था पन्हाला का किला!
यद्यपि आरंभिक दिनों में ही शिवाजी महाराज ने पन्हाला किला जीत लिया था, पर एक हिन्दू राजा के विरुद्ध एक हिन्दू राजा को लड़ाने की नीयत से औरंगजेब द्वारा भेजे गए मिर्जा राजा जयसिंह की घेराबंदी और स्वराज्य पर आता संकट देखकर शिवाजी राजे को पुरंदर की संधि में अपने 23 किले मुगलों को देने पड़े थे,जिनमे पन्हाला किला भी शामिल था!
यद्यपि महाराज ने 1660 में उसे दोबारा जीतने का प्रयत्न किया था, किंतु वे असफल रहे थे और बिना पन्हाला को स्वराज में मिलाए उन्हें राज्याभिषेक करवाना अखर रहा था!
एक दिन राजसभा में महाराज ने अपने मन की बात रखी! कोई भी पन्हाला की मुहिम पर जाने को तैयार नहीं हुआ, परन्तु महाराज में एक बात बड़ी खास थी..और वो थी आदमी पहचानने का उनका गुण! उन्होंने कहा….”सिर्फ एक ही तलवार यह काम कर सकती है और वह है अपना व्याघ्रस्वरूप कोंडाजी फ़र्ज़न्द!”
कोंडाजी को उनके गांव से बुलाने के लिए सैनिक भेजे गए! उस वक़्त कोंडाजी अपने लोगों के साथ शस्त्र अभ्यास कर रहे थे! राजे की बुलाहट की सूचना मिलते ही वे रायगढ़ चल पड़े!
रायगढ़ आते ही महाराज उनसे मिले और अपने मन की बात बताई! कोंडाजी ने तुरन्त सीने पर हाथ रखकर झुकते हुए कहा…”आज्ञा करा राजे!”
पुनः महाराज ने उनसे पूछा…”इस मुहिम के लिए कितने आदमी चाहिए?”
कोंडाजी चुप रहे!
महाराज ने पुनः पूछा….”दो हजार? चार हजार? पांच हजार?
कोंडाजी ने कहा…”साठ!”
महाराज हैरान हो गए! पन्हाला की बनावट ऐसी थी कि उसे जीतना आसान नहीं था! और कोंडाजी मात्र 60 सैनिकों की सहायता से पन्हाला कैसे जीतेंगे, यह सोचकर महाराज को बहुत आश्चर्य हुआ! फिर भी उन्होंने कोंडाजी की बहादुरी और आत्मविश्वास देखते हुए उन्हें मनपसंद 60 आदमी दे दिए!
बस उसी दिन से कोंडाजी अपने लोगो के साथ लग गए पन्हाला फतेह की तैयारी में!
उन्होंने उन 60 लोगों के समूह को कई भागों में बांटा जैसे पैदल सैनिक, घुड़सवार, तीरंदाज, तोपची और भाला बरछी वाले निशानेबाज! सभी तन मन से तैयारियों में जुट गए और फिर एक रात कोंडाजी महाराज से आज्ञा लेने गए!
महाराज ने पूछा, कैसी चल रही तैयारी?
कोंडाजी ने उसी आत्मविश्वास से जवाब दिया कि सब तैयार हैं राजे! आप बस कूच की आज्ञा दीजिए!”
राजे से यही बात तानाजी ने बोली थी जब वो कोंडाणा जीतने जा रहे थे, और राजे ने उनसे लौटकर आने का वादा लिया था, परन्तु तानाजी को अपना बलिदान देने पड़ा था!
“जगदम्बे!” कहते हुए महाराज का हाथ अपनी कपर्दिक की माला पर गया और उन्होंने जीवित लौटकर आने का वादा लेते हुए कोंडाजी को कूच करने की इजाजत दे दी!
परन्तु उस रात स्वयं महाराज को भी नींद नहीं आई! उन्हें अबतक आश्चर्य था कि कोंडाजी मात्र 60 मावलों को लेकर विजय कैसे हासिल करेंगे! सारी रात वह भवानी को “जगदम्बे! जगदम्बे!” कहकर गुहराते रहे!
उधर कोंडाजी ने स्वराज के मतवाले केवल साठ वीरों को लेकर कूच कर दिया! कूच से पहले उन्होंने महाराज के प्रमुख जासूस बहिरजी नाइक से पन्हाला का चप्पा चप्पा पता लगा लिया था!
एक दरवाजे पर तलवार वाले सैनिको और दूसरे दरवाजे पर तीरंदाजों को तैनात कर कोंडाजी स्वयं बिना कोई शोर किए, बुर्ज पर पहरा दे रहे सैनिकों के गले काटते हुए ऊपर चढ़ गए और उन्होने रस्सी फेंककर शेष सैनिकों को भी ऊपर चढ़ा लिया!
बड़ी शांति से मुंह दबाकर मुगल सैनिकों के गले काटे जाने लगे! जिनको भाला मारा जाता था, उनके गिरने का शोर नहीं हो, इसके लिए उनके पीछे एक सैनिक रहता था,जो उसके गिरने पर उसे आराम से पकड़कर सुला देता था!
कई मुगल सैनिक मारे गए! कुछ वक्त बाद दुर्ग की नींद खुली और तबतक सैकडों मारे जा चुके थे और एक भी मावला सैनिक नहीं मरा था! जब हल्ला मचा तब भयंकर मारकाट शुरू हो गई! घण्टे भर पहले शांति से सो रहा पन्हाला किला अब “हर हर महादेव” की ललकार और तलवारों की टकराहट से भर गया!
मावले बड़ी वीरता से लड़े! कोंडाजी स्वयं मुगल किलेदार बेशक खान से भिड़ गए! यद्यपि कोंडाजी स्वयं बहुत ताकतवर थे, पर खान उनसे भी ताकतवर था! उसने कोंडाजी को कई जगह घाव दे दिया! पर कोंडाजी को जीवित लौटकर आने वाला राजे को दिया हुआ वचन याद था!
उधर दुसरे मराठे पूरी जान लगाकर लड़ रहे थे और इधर बेशक खान के एक वार से कोंडाजी भूमि पर गिर पड़े! उसी समय उन्हें एक तरकीब सूझी! उन्होंने अपने को अचेत दिखाने के लिए अपनी आंखें मूंद ली और बेशक खान को लगा कि कोंडाजी मर गया!
वह “इंशाल्लाह” बोलते हुए अट्टहास करता हुआ ज्योंहि कोंडाजी के नजदीक आया, बिना एक क्षण की देरी किए कोंडाजी की तलवार उसके कलेजे के आरपार हो चुकी थी!
कोंडाजी ने खून थूका और इससे भी जब उनका दिल नहीं भरा तो उन्होंने बेशक खान का सर काट डाला!
मुगल सैनिकों में भगदड़ मच गई कि खान मारा गया! कुछ भागने लगे और कुछ मारे गए! जो बचे, उनमे कोई जिंदा नहीं बचा!
2500 मुगलों की रहवाली में घिरा पन्हाला जीत लिया गया था!मात्र साढ़े तीन घन्टे में!
अगली सुबह पन्हाला किले पर स्वराज का भगवा ध्वज शान से लहरा रहा था!
राजे खुद चलकर कोंडाजी से मिलने आए और उन्हें देखते ही उन्होंने जोर से गले लगा लिया!
इस तरह कोंडाजी की वीरता से पन्हाला स्वराज में शामिल हो चुका था और शिवाजी महाराज ने भी खुशी खुशी अपना राज्याभिषेक करवाया और वे शिवाजी शाहाजी भोंसले से बन गए सम्पूर्ण मराठा साम्राज्य के “छत्रपति शिवाजी महाराज”!