जालंधर का एक फ़ौजी परिवार अपने युवा दिव्यांग बच्चों की मदद के लिये सालों से गुहार लगाते हुए, दर दर की ठोकरें खा रहा है, परंतु सरकार उनकी मदद के लिये कोई कदम नहीं उठा रही है। ऐसे में एक फ़ौजी के परिवार के प्रति, सरकार की उदासीनता और कठोरता देखकर एक प्रश्न एक सामान्य नागरिक को विचलित कर देता है।
क्या ये वही देश है, जहां केजरीवाल सरकार ने, 2012 में घटित भयावह और दुखद निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या के सबसे क्रूर बलात्कारी, मोहम्मद अफरोज को 2015 में सिलाई की दुकान खोलने में सक्षम बनाने के लिए एक सिलाई मशीन के साथ 10,000 रुपये भी दिये थे?
क्या ये वही देश है, जहां अखिलेश यादव सरकार ने जनवरी 2016 में मोहम्मद अख़लाक़ के रिश्तेदारों को 45 लाख रुपये मुआवज़े के अलावा नोएडा में चार फ्लैटों से सम्मानित किया था। मुहम्मद अख़लाक़ वही है जो सितंबर 2015 में कथित तौर पर एक गाय का वध करने के लिए और उसका सेवन करने के लिये मारा गया था।
भूतपूर्व फ़ौजी नायब सूबेदार, गोपाल कृष्ण और उनकी पत्नी, भारती शर्मा अपने दिव्यांग बच्चों, नीरज शर्मा (29) और ज्योति शर्मा (26) की मदद के लिये सरकार से सालों से गुहार लगा रहे हैं, परंतु सरकार ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे उन दिव्यांगों की तकलीफ़ और पीड़ा पर आंखें मूंद लीं हो। शर्मा परिवार का अपराध ये है कि वो सामान्य श्रेणी में आते हैं। क्या उच्च जाति परिवार में जन्म लेना इतना बड़ा पाप है कि उनकी पीड़ा और उनके अथाह कष्ट की ओर, सरकार ध्यान देना ज़रूरी ही ना समझे।
नीरज शर्मा, जिसका जन्म 4 दिसंबर 1991 को हुआ, ज्योति शर्मा, जिसका जन्म 27 जनवरी 1994 को हुआ, दोनों जन्म से ही बहरे और गूँगे थे। दोनो गूँगे और बहरे है इस बात का पता उनके माता पिता भारती शर्मा और गोपाल कृष्ण को तब पता चला जब दोनों छ: और सात साल के हो गऐ थे। नायब सूबेदार, गोपाल कृष्ण और उनकी पत्नी, भारती शर्मा के लिये ये बहुत बड़ा आघात था, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, और उन्होंने अपने दिव्यांग बच्चों को बचपन से ही खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये भरपूर प्रोत्साहित किया। यही वजह है नीरज शर्मा और ज्योति शर्मा के पास पदकों की भरमार है, साथ ही उन्होंने अपने बच्चों की वाक – चिकित्सा (Speech Therapy) का इलाज भी करवाते रहे।
नीरज शर्मा, जिसने अपनी शिक्षा 10+2 तक पूरी कि है, ने अंतराष्ट्रीय कराटे ब्लैक बेल्ट में स्वर्ण पदक जीता है। उनकी बहन ज्योति शर्मा, जिसने केंद्रीय विधालय से आंठवी कक्षा तक पढ़ाई की है, ने अब तक बैडमिंटन में एक स्वर्ण पदक और अंतराष्ट्रीय कराटे ब्लैक बेल्ट में 11 स्वर्ण पदक और 4 रजत पदक जीता है। लगातार वाक – चिकित्सा (Speech Therapy) के इलाज ने भी सकारात्मक परिणाम दिखाया। नीरज शर्मा जब 18 साल के हुए तो बोलना शुरू कर दिया, उनकी बहन ज्योति शर्मा जब 15 साल की हुई तो उसने भी बोलना शुरू कर दिया। आज दोनों कान के मशीन (Hearing Aid) की सहायता से बोल और सुन सकते हैं।
इतने सारे पदक जीतने के बाद भी नीरज शर्मा और उनकी बहन ज्योति शर्मा ने आजीविका कमाने के लिये जहां भी संपर्क किया, चाहे वो खेल कूद का कोटा हो या विकलांग कोटा हो, हर जगह से दोनों भाई बहन को एक ही फटकार मिली कि वो सामान्य श्रेणी में आते है, उनकी कोई मदद नहीं कि जा सकती, अगर वो अति पिछड़ी जाति की श्रेणी में आते तो उनकी मदद की जा सकती थी।
सरकार युवाओं को खेलों के प्रति हर प्रकार से प्रोत्साहित करती है, लेकिन जब स्वर्ण पदक विजेता उनके पास रोज़गार की तलाश में जाता है तब वहाँ भी सामान्य श्रेणी में आने वाले खिलाड़ी को दुत्कार दिया जाता है। ये कैसी व्यवस्था प्रणाली है जिसमें उच्च जाति में आने वाले आवेदक को इसलिये नौकरी नहीं दी कि वो अति पिछड़ा जाति की श्रेणी में नहीं आता है। और अति पिछड़ा जाति की श्रेणी में आने वाले भोले वाले लोगों का धर्मांतरण कर दिया जाता है। पंजाब में अंकुर योसेफ़ नरुला जैसे मिशनरी बाबा की भरमार है जो गरीब और पिछड़ी जाति के भोले भाले लोगों की समस्याओं का अनुचित लाभ उठाकर धर्मांतरण कर देते है।
जिस देश में मोहम्मद अख़लाक़ और मोहम्मद अफ़रोज़ को बिना समय नष्ट किये सरकारी सहायता प्रदान कर दी जाती है, उसी देश में एक भूतपूर्व फ़ौजी के दिव्यांग बच्चों के साथ इतना बड़ा अन्याय क्यो?