जगदम्बा के पायल बाजे नुपुर की झंकार हुई
जगदम्बा के पायल बाजे नुपुर की हुंकार हुई
प्रगट हुए महादेव, प्रगट हुए महादेव
सोया हुए सनातनी जगे
जागा अबतो भारत महान
माँ माई मेरी नुपुर हू,
नुपुर हू, विदुषी हु
मेरे भाई अनेक
सभी भाई की दुलारी हुई मैं
मेरी वाणी ने सत्य ही तो कहा:
यहा ही जाकिर नाइक ने भी कहा:
फिर उसका क्यो नहीं हुआ कुछ:
सनातनी नारी हु, अबला नहीं
विदुषी हु, तेरी तहर मुरख नहीं
आदि शंकराचार्य रचित विवेकचुनामणि हु माई
पाओगे हर हर हिंदू घर मैं मुझे
द्रौपदी के केश खुले हैं
राजस्थान की झंझवत लालकर हूं मैं
नुपुर हू, विदुषी हु
महादेव के तीसरे नेत्र से डर
जगदम्बा के खुले केश से डर
अविमुक्तेश्वर महादेव प्रकृति अही बाकी
तांडव नृत्य है बाकी
अर्धनारीश्वर लय नृत्य है बाकी
हिंदू सिख जैन बोध हिंदू हम सभी सनातनी हिन्दू।
पलायन नहीं पराक्रम के मंत्र का संकल्प लिये
मात्र धर्मांतरण ही नहीं करते बल्कि राष्ट्र विरोधी है
अर्धनारीश्वर का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
A Poem in support of Nupur Sharma Ji

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