- सुर नर मुनि कोऊ नाहि जेहि न मोह माया प्रबल |
अस बिचारि मन माहि भजिअ महामाया पतिहि ||
इन पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदासजी ने प्रभु श्री राम के शक्तिशाली मायावी रूप-स्वरुप का वर्णन किया है | देवता ,ऋषि –मुनि तथा सभी मनुष्य प्रभु की माया से मोहित हो जाते हैं | ऐसा सोचकर हमें प्रभु राम की भक्ति में अपने आपको लीन कर देना चाहिए |
2. जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता |
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धुसुता प्रिय कंता ||
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई |
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ||
गोस्वामी तुलसीदासजी ने इन पंक्तियों में भगवान श्री राम के सर्वव्यापी एवं अलौकिक रूप का वर्णन किया है |प्रभु श्री राम अविनाशी और सबके हृदय को असीम सुख प्रदान करने वाले हैं | ऐसे महाप्रभु श्री राम की कवि तुलसीदासजी ने जय जयकार की है | संसार से विरक्त अनेक ज्ञानी पुरुष रात-दिन इसीलिए प्रभु श्री राम का ध्यान करते हैं | ऐसे प्रभु की गोस्वामी तुलसीदासजी बार –बार वंदना करते हैं | ऐसे प्रभु श्री राम के सच्चिदानंद स्वरुप का हमें निरंतर ध्यान करना चाहिए | सारे कष्टों से मुक्ति का एकमात्र यही उपाय है |