ये रौशनी, ये दीप ज्योतियाँ देख रहे हो विधर्मियों?
यह रौशनी हमारी आस्था की वह रौशनी है, जिसमे तुम्हारे सारे कुतर्क जल जाते हैं!
यह रौशनी उस ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है, जो तुम्हारे हर बार चीखने चिल्लाने वाली आवाज को एक जोरदार तमाचा मारकर कहती है, कि वास्तव में तुम्हारी चीखें, तुम्हारे धर्म विरोधी कुतर्क दीये-तेल की बचत और गरीबों के हित तक नहीं हैं, बल्कि तुम्हारा मकसद तो सनातन को मिटाना है!
पर जान लो! जब जब तुम हमारी आस्था को चोट पहुँचाओगे, हर बार इसी तरह एक सनातनी के हाथों में जल रहे कर्पूर की तरह हवा हो जाओगे!
तुम्हारे मिटाने से न कभी हम मिटे थे, और ना कभी मिटेंगे!
जब जब तुम धर्म को हानि पहुँचाने की कुचेष्टा करोगे, तब तब ऐसे असंख्य दीप जलकर तुम्हारी आँखों को चौंधिया देंगे और तुम रह जाओगे, आंख होते हुए भी अन्धे से!
जब जब तुम हमारी निष्ठा पर प्रहार करोगे, कमर तक पानी में खड़े होकर कोई छठ की व्रती, ताल ठोककर कहेगी….”अरे हम तो अर्घ्य देते समय साक्षात सूर्य को भी बालक बनाकर अपनी सिपुलि में खिला देती हैं, फिर तुम्हारी तो औकात ही क्या है!”
जब जब सनातन के केंद्र बिंदुओं पर बिलबिलाहटों और अनर्गल प्रलापों की आंधी बहेगी, तब तब कोई दिया अकेले ही उस तूफान से मुकाबला करता खड़ा दिखाई पड़ेगा तुम्हे और तुम्हारी हर एक आंधी हार जायेगी हमारे एकमात्र छोटे से दिये के आगे भी!
और जान लो! जिस सनातन को तोड़ने की कोशिश तुम पीढ़ियों से करते आए हो, वह सनातन उस दिए के समान है,जो लड़ता है हर तूफान से, जूझता है हर आंधी से, टिमटिमाता रहता है हर प्रलय के बीच भी…..पर कभी बुझता नहीं है!
तो तुम चीखते रहो! चिल्लाते रहो! सनातन अपनी मौज में बढ़ता जाएगा, फलता फूलता रहेगा और अपनी ऊर्जा आने वाली पीढ़ियों को स्थानांतरित करता जाएगा ताकि आने वाली पीढियां भी तुम विधर्मियों के आगे ताल ठोककर कहें कि…..”हम आदि हैं! हम अनंत हैं!क्योंकि हम सनातन हैं!”
“क्योंकि हम सनातन हैं!”
जय छठी मईया! जय जगदम्ब!*