यह गाँधी परिवार जब सत्ता में नहीं होता तो सत्तासीन पार्टी को बदनाम करने के लिए कितना नीचे गिर सकता है इसका एक और उदाहरण आपको याद दिलाता हूँ। मई 2011 में उत्तर प्रदेश के #भट्टा_परसौल में भूमि अधिग्रहण को लेकर एक किसान आंदोलन हुआ था। कांग्रेस के इशारे पर इस आंदोलन में कुछ अराजक तत्व शामिल हो गए और भीड़ हिंसक हो गई। किसानों की भीड़ से पुलिस पर गोलियाँ चलाई गईं तो पुलिस को भी जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। इस हिंसक टकराव ने चार लोगों की जान ले ली – मरने वालों में दो किसान और दो पुलिसकर्मी थे। इस संघर्ष में कुल 60 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। साथ ही घायल हुए थे तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल जिनके पैर में गोली लगी थी।
इस घटना के तुरंत बाद राहुल गाँधी की घटिया राजनीति शुरू हो गई। राहुल गाँधी भट्टा परसौल जाना चाहता था ताकि वहाँ के किसानों को और हिंसा के लिए भड़काया जा सके। पर मायावती सरकार की पुलिस को इस बात का पता चल गया और उसने किसी भी पॉलिटिशियन के उस गाँव में जाने पर पाबंदी लगा दी। पर राहुल गाँधी कहाँ मानने वाले था। उसे तो इस आपदा को स्वयं के लिये अवसर में बदलना था। एक दिन सुबह-सुबह वह एक लोकल कांग्रेस कार्यकर्ता धीरेन्द्र सिंह की बाइक पर सवार होकर मुँह ढक कर भट्टा परसौल पहुँच गया। साथ में पहुँचे थे दिग्विजय सिंह। गाँव में पहले से तैयारियां थीं। राहुल मृतक किसानों के परिवारजनों से मिला और थोड़ी बहुत भाषणबाजी भी की।
पर वहाँ से वापस लौट कर दिल्ली में राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बातें कहीं वो चौंकाने वाली थीं। राहुल ने कहा कि भट्टा परसौल में मुझे बताया गया कि पुलिस ने 74 किसानों को जिंदा जला दिया और कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया। राहुल ने कहा कि मैंने खुद अपनी आंखों से कुछ उपलों (कंडे) के सुलगते हुए ढेर देखे जिसमें मुझे मानव अस्थियाँ दिखाई दीं। जब प्रेस वालों ने राहुल गाँधी से पूछा कि क्या वो सबूत के तौर पर अपने साथ कुछ मानव अस्थियाँ लेकर आये हैं? तो उसका उत्तर था, “नहीं मैं लाया नहीं हूँ पर मैंने देखा है, वो भी अपनी आँखों से।” इससे स्पष्ट हो गया कि राहुल गाँधी झूठ बोल रहा था। अगर मानव अस्थियाँ देखी थीं तो लाई क्यों नहीं?
इस ‘हत्याकांड और बलात्कार’ की जांच हेतु राहुल ने एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दिया। लेकिन न तो एक भी ऐसी महिला मिली, जिसने थाने पहुंचकर कहा हो कि मेरे साथ दुराचार हुआ है। और न ही एक भी ऐसा परिजन मिला जिसने कहा हो कि मेरे परिवार के व्यक्ति को जिंदा जला दिया गया। राहुल के थोथे बयान की हवा कुछ मीडिया वालों ने भट्टा परसौल में घर-घर दस्तक देकर निकाल दी। अब जरा सोचिये कि जो व्यक्ति अपनी राजनीति चमकाने के लिए 74 किसानों को जिंदा जला देने की कहानी गढ़ता हो, उपलों की राख को मानव अस्थियों की राख बता देता हो, महिलाओं के बलात्कार की झूठी खबरें फैलाता हो, उसके लिये हाथरस में युवती की हत्या को गैंगरेप और जातिवादी हिंसा की कहानी में बदल देना बहुत छोटी सी बात है। इसलिये हर वह भारतीय जो भारत में शांति चाहता है उसका यह कर्तव्य बनता है कि झूठ पर आधारित राजनीति को बेनकाब करे और ऐसी राजनीति करने वालों को देश की राजनीति से हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दे। हम सबकी यह कोशिश होनी चाहिए कि इस नीच, दुष्ट गाँधी-वाड्रा परिवार को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाए।