मेरे हिसाब से फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दोनों को अभी रिहा कर देना, भारत सरकार का बेहद सोचा समझा कदम है. दोनों ही नेताओं को रिहा करने के लिए समूचे विपक्ष का पूरा दबाव था और इसके लिए कई याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में भी दाखिल की गई थी. महबूबा मुफ्ती को उनके केस की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के एक दिन पहले ही रिहा किया गया. एक वर्ष तक जेल में रहने के बाद अब इन दोनों की रिहाई से संबंधित सभी याचिकाएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी.
सभी विपक्षी दलों की पुरानी मांगे भी स्वीकार हो गई है, और अब उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. इन नेताओं को जेल से रिहा करने से पूरे विश्व को संदेश भी दे दिया गया है, कि जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हो जाने के बाद वहां के सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया है. इससे पूरे विश्व में भारत की लोकतांत्रिक छवि भी मजबूत होगी और जम्मू कश्मीर में भारत द्वारा उठाए गए कदम को परोक्ष समर्थन भी मिल जाएगा. जिसके दूरगामी परिणाम होंगे.
दशकों से अनुच्छेद 370 के अंतर्गत मिली कश्मीरी स्वायत्तता एक मिथ्या बनकर रह गई है. यह बक्शी ग़ुलाम मोहम्मद और सैयद मीर क़ासिम की सरकार के समय ही नष्ट हो गई थी, जो 1975 के बेग – पार्थसारथी समझौते के शेख अब्दुल्ला को मुख्यधारा में लाने के बावजूद वापस खड़ी नहीं हो पाई. असल में 1954 से 1995 के बीच केंद्र सरकार द्वारा अपने संविधान के अनुसार चलने वाले इस राज्य की विशेष शक्तियां छीनने के लिए करीब 200 संवैधानिक आदेश पारित किए गए थे. अनुच्छेद 370, भले ही जितना भी खोखला हो, भारत की नज़र में कश्मीर की विशिष्टता का प्रतीक था. यह भले ही बेजान रहा हो, लेकिन फिर भी यह कश्मीरी पहचान का महत्वपूर्ण प्रतीक बना रहा. अब जब नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी ने इसे ख़त्म कर दिया है, इसके त्वरित मनोवैज्ञानिक परिणाम तो होंगे ही, साथ ही लंबे समय तक के लिए राजनीतिक अशांति भी देखने को मिल सकती है. ऐसा अलगाववादी ताकतों का मानना था, पर ऐसा कुछ नहीं देखने को मिला. लेकिन जम्मू कश्मीर में बहुत ज्यादा शांति रही. पथरबाज़ न जाने कहाँ कहाँ छुप गये. न ज्यादा आज़ादी आज़ादी की गूजें पुरे प्रदेश में सुनाई दी गयीं. हवाला का पैसा बंद हो जाने से सब रेहनुमा चुपचाप हो गये.
यह सही है की जेल से बाहर आते ही इन दोनों नेताओं ने जन्नत में जहर घोलने वाला पुराना राग अलापना शुरू कर दिया है लेकिन यह बहुत स्वाभाविक है क्योंकि इनके पास अपना अस्तित्व बचाने के लिए और कोई विकल्प भी शेष नहीं बचा है. जहां फारूक अब्दुल्ला ने चीन की सहायता से धारा 370 और 35 A की बहाली का ऐलान कर दिया है वही उनका यह भी कहना है कि जम्मू कश्मीर में भारत की अपेक्षा चीन का शासन ज्यादा बेहतर होगा. जहरीले बयान देने में महबूबा मुफ्ती भी कहां पीछे रहने वाली थी उन्होंने कहा कि धारा 370 और 35 A हटाना काले दिन का काला फैसला था, जिसने सीधे दिल पर वार किया है और उसके लिए वह संघर्ष करेंगी.
रिहा हुए इन सभी नेताओं की बैठक फारूक अब्दुल्ला के निवास पर हुई, जिसमें गुपकार समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले जम्मू कश्मीर के सभी दल शामिल थे, कांग्रेस अध्यक्ष बीमारी की वजह से नहीं आ सके, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी इसमें शामिल हुई. अंतर सिर्फ यह आया है कि पहले ये लोग पकिस्तान की भाषा बोलते थे, अब चीन की भाषा बोल रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला ने इस गठबंधन को पीपुल्स अलायंस नाम देते हुए कहा कि वे राज्य में 5th अगस्त 2019 के पहले की स्थिति बहाल करने के लिए प्रयास करेंगे.
जैसे – जैसे इनके देश विरोधी बयान आते जाएंगे इनके पुन: जेल जाने की भूमिका तैयार होती जाएगी और इस प्रकार इनका जेल जाना तय है. सिर्फ समय की बात है. जम्मू कश्मीर की जनता हमेशा से मजबूर ही रही है. बीजेपी का पहले कोई अस्तित्व नहीं था, कॉंग्रेस बहुत समय सत्ता में रही और बहुत कुछ करने की क्षमता रखती थी परन्तु उन्होंने कुछ किया नहीं. अब जनता के पास ले देके अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार (पार्टी) बची जिन्हें वो बारी बारी से चुनते रहे. जनता की मजबूरी रही होगी दो गधों में से एक को चुनना जिसे ज़न समर्थन नहीं कहा जा सकता.
धारा 370 के हटने के बाद पिछले एक वर्ष में वास्तव में जनता को कुछ बेहतर स्थिति लगी होगी तो समझ लें कि अब्दुल्ला / महबूबा की स्थिति उन जहरीले साँपों जैसी हो गई है, जिनके ज़हर की थैली व दांत निकल गए हों. वो फुंकार तो सकते हैं पर कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं. गृह मंत्रालय ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (केंद्रीय कानूनों का अनुकूलन) तीसरा आदेश, 2020 जारी किया और तत्कालीन राज्य के 26 कानूनों को प्रतिस्थापित किया. जम्मू कश्मीर विकास अधिनियम की धारा 17 से ‘राज्य के स्थायी निवासी’ को छोड़ कर, जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों द्वारा भूमि की खरीद पर प्रतिबंध हटाया गया है.
किसी ने सही फ़रमाया है.
पशेमां हैं जहां भर में मगर होशियारी नहीं जाती
अजब ये कौम है जिसकी मक्कारी नहीं जाती
जवां तो छोड़िए इनके बुजुर्गों की ये हालत है
कब्र में पैर है फिर भी गद्दारी नहीं जाती.