हिन्दू पंचांगस्य अनुसारम्, इति वर्षम् भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथिसि प्रारम्भम् ११ अगस्त प्रातः ९:०६ वादनात् भविष्यति १२ अगस्त च् दिवसे ११:१६ वादनेव रहिष्यति ! वैष्णव जन्माष्टमायै १२ अगस्त शुभ मुहूर्तम् अस्ति ! बुधवासरस्य रात्रि १२:०५ वादनात् १२:४७ वादनेव बाल – गोपालस्य पूजाम् – अर्चनाम् कृत शक्नोति !
हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 अगस्त को सुबह 9:06 से होगी और 12 अगस्त को दिन में 11:16 मिनट तक रहेगी ! वैष्णव जन्माष्टमी के लिए 12 अगस्त का शुभ मुहूर्त है ! बुधवार की रात 12.05 बजे से 12.47 बजे तक बाल – गोपाल की पूजा – अर्चना की जा सकती है !
श्रीमद्भागवतम् दशमं स्कन्धे कृष्ण जन्म प्रसंगे उल्लेखम् मिलति तत अर्धरात्रे इति कालम् धरायाम् कृष्णम् अवतरितः स्म तेन कालम् ब्रजे गहनम् मेघम् अच्छादितः स्म ! तु चन्द्रदेवः स्व दिव्य दृष्टेन स्व वंशजम् जन्म लेभे अपश्यत् स्म ! इति कारणम् अस्ति तत श्री कृष्णस्य जन्म अर्धरात्रे चन्द्रमा उदयम् सह भवति !
श्रीमद्भागवत दशम स्कंध में कृष्ण जन्म प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि अर्धरात्रि में जिस समय पृथ्वी पर कृष्ण अवतरित हुए थे उसी समय ब्रज में घनघोर बादल छाए थे ! लेकिन चंद्रदेव ने अपनी दिव्य दृष्टि से अपने वंशज को जन्म लेते हुए देखा था ! यही कारण है कि श्री कृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में चंद्रमा उदय के साथ होता है !
जन्माष्टमी पूजा विधिम् !
जन्माष्टमी पूजा विधि !
जन्माष्टमायाः दिवस उपवासम्, पूजनम् नवमीस्य पारनेन व्रतस्य पूर्तिम् भवति ! व्रतं कृतं भक्तानि उपावसस्य पूर्व दिवसम् लघु भोजनम् करणीय ! रात्रे जितेंद्रिय रहतु उपवासस्य दिवसम् च् प्रातः स्नानम् इत्यादि नित्यकर्म कृत्वा सूर्य:, सोमः, यमः, काल:, सन्धि:, भूत:, पवनः, दिक्पति:, भूमि, खम:, खेचरः, अमरः ब्रह्म: च् इत्यादिम् नमस्कारम् कृत्वा पूर्वम् उत्तरम् च्दिशाम् प्रति मुखम् कृत्वा अतिष्ठत् ! अस्य उपरांत हस्ते जलम्, फलम्, कुशम्, पुष्पम् गंधम् च् गृहित्वा, ममाखिल पापप्रशमन पूर्वक सर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये इति बदितम् संकल्पम् कुर्यात् !
जन्माष्टमी के दिन उपवास, पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है ! व्रत रखने वाले भक्तों को उपवास के पहले दिन लघु भोजन करना चाहिए ! रात में जितेन्द्रिय रहें और उपवास के दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्म करके सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर चेहरा करके बैठें ! इसके बाद हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गंध लेकर, ममाखिल पापप्रशमन पूर्वक सर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये बोलते हुए संकल्प करें !
मध्याह्नस्य कालम् कृष्ण तिलानां जलेन स्नानं कृत्वा देवकै सूतिका गृहस्य स्थानम् नियतम् कुर्यात् ! तम् स्वच्छम् सुशोभितम् च् कृत्वा तस्मिन् सुतिकास्य उपयोगिम् सम्पूर्ण सामग्रीम् क्रमेण धारयत् ! सामर्थ्यम् भव तर्हि भजनम् – कीर्तनस्यापि अयोजनम् कुर्यात् ! प्रसूति गृहस्य सुखदे विभागे सुन्दरम् सुकोमलम् च् संस्तरनाय सुदृढ़ मंचे अक्षतादि मण्डलम् निर्मयित्वा तस्मिन् शुभ कलशं स्थापितं कुर्यात् ! तस्मिन्नेव स्वर्णम्, रजतम्, ताम्रम्, पितलम्, मणिम्, मृत्तिकास्य मूर्तिम् चित्ररूपम् च् स्थापितं कुर्यात् ! मुर्त्यां श्री कृष्णम् स्तनपानम् कृतं देवकी भव लक्ष्मी च् तस्य पदस्पर्शम् कृतं भव, इदम् भावम् अप्रकटत् तर्हि सर्वात् साधु अस्ति !
मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए सूतिका गृह का स्थान नियत करें ! उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सारी सामग्री क्रम से रखें ! सामर्थ्य हो तो भजन – कीर्तन का भी आयोजन करें ! प्रसूति गृह के सुखद विभाग में सुंदर और सुकोमल बिछौने के लिए सुदृढ़ मंच पर अक्षतादि मंडल बनवा कर उस पर शुभ कलश स्थापित करें ! उस पर ही सोना, चांदी, तांबा, पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी की मूर्ति या चित्र रूप (फोटो) स्थापित करें ! मूर्ति में श्री कृष्ण को स्तनपान करवाती हुई देवकी जी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श करते हुए हों, ऐसा भाव प्रकट रहे तो सबसे अच्छा है !
अधो ददाति मंत्रेण देवकी मातृ अर्घ्यम् दत्त: !
प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामन: ! वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम: !! सपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोSस्तु ते !
नीचे दिए गए मंत्र से देवकी मां को अर्घ्य दें !
प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामन: ! वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम: !! सपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोSस्तु ते !
श्री कृष्णम् अस्य मंत्रम् सह पुष्पांजलिम् अर्पितम् कुर्यात् !
धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम: !
श्री कृष्ण को इस मंत्र के साथ पुष्पांजलि अर्पित करें !
धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम: !
पुष्पांजलिम् अर्पितम् कृतस्य उपरांत नवजात श्रीकृष्णस्य जातकर्मम्, नालच्छेदनम्, षष्ठीपूजनम्, नामकरणम् च् इत्यादि कृत्वा, सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसंभवाय सोमाय नमो नम: इति मंत्रेण चन्द्रस्य पूजनम् कुर्यात् ! पुनः शंखे जलम्, फलं, कुशम्, कुसुमम् गंधम् च् मिश्रित्वा द्वयो जानुम् भूमे स्थिरीकृत: इति मंत्रेण च् चन्द्रम् अर्घ्यम् अददात् !
क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव। गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम !!
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते ! नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम् !!
पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद नवजात श्रीकृष्ण के जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन और नामकरण आदि करके, सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसंभवाय सोमाय नमो नम: मंत्र से चंद्रमा का पूजन करें ! फिर शंख में जल, फल, कुश, कुसुम और गंध डालकर दोनों घुटने जमीन पर टिकाएं और इस मंत्र से चंद्रमा को अर्घ्य दें !
क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्रसमुद्भव। गृहाणार्घ्यं शशांकेमं रोहिण्या सहितो मम !!
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते ! नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम् !!
चन्द्रम् अर्घ्यम् दातस्य उपरांतम् रात्रिस्य शेष भागम् स्तोत्र – पाठम् इत्यादि कृतं व्यतीतम् कुर्यात् ! तस्य उपरांत अग्र दिवसम् पुनः स्नानम् कृत्वा येन तिथिम् नक्षत्रादिसि योगे अकरोत् असि, तस्य समापनम् भवे पारणाम् कुर्यात् ! यदि अभीष्टम् तिथिम् नक्षत्रस्य समापनम् भवे विलम्बम् भव तर्हि जलम् पीत्वा पारणास्य पूर्तिम् कुर्यात् !
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद रात्रि के शेष भाग को स्तोत्र – पाठ आदि करते हुए व्यतीत करें ! उसके बाद अगले दिन सुबह पुन: स्नान करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो, उसका अंत होने पर पारणा करें ! यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्र के खत्म होने में देरी हो तो पानी पीकर पारणा की पूर्ति करें !