17.1 C
New Delhi

शताब्दियों चली, राम मन्दिर निर्माण की यात्रा का हुआ समापन

Date:

Share post:

छांदोग्य उपनिषद का वाक्य है कि “सर्वं खल्विदं ब्रह्मम” अर्थात ब्रह्म सर्वत्र  विद्यमान है परंतु इसके साथ साथ सनातन संस्कृति में स्थान विशेष का महत्व है ।। इसीलिए कई वर्षों से अनगिनत सनातन धर्मावलंबियों की  इच्छा रही है कि आस्था के केंद्र , अयोध्या में भगवान श्री राम की जन्मभूमि के स्थान पर भव्य राम मंदिर निर्माण का मार्ग जल्द प्रशस्त हो ।।मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिन्होंने हमेशा अपने शासन काल में अपनी प्रजा को कभी विवादों में उलझने नहीं दिया सदैव उनके विवाद सुलझाते ही रहे , परन्तु कलयुग में दुर्भाग्यवश राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति एवं दूषित राजनीतिक मानसिकता के चलते राम मन्दिर के मुद्दे को सदैव कुछ नेताओं ने उलझाये रखा  ।।किन्तु  जिस तरह अपनी झोपड़ी में एक दिन प्रभू श्रीराम के आने का शबरी को विश्वास था ,उसी तरह राम में आस्था रखने वाले असंख्य भक्तो को विश्वास था कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मन्दिर बनने में आने वाली समस्त रुकावटें समाप्त हो जाएंगी और ऐसा ही हुआ ।।दशको से चले आ रहे अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय ने निरंतर  सुनवाई कर इस विवाद को समाप्त कर दिया ।।

सनातन धर्मावलंबियों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अपनी ही जन्मस्थली पर भव्य मन्दिर निर्माण के लिए शताब्दियों का इंतजार करना पड़ा ।।एक तरफ जहां राम भारतवासियों के श्रेष्ठतम आदर्शो एवं मुख्य आस्था के केन्द्र रहे वहीं दूसरी ओर उन्हें राजनैतिक गलियारों का भी केन्द्र बनाये रखा ।।
राम मन्दिर निर्माण के संघर्ष की यात्रा की नींव का श्रेय , भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक  बाबर को जाता है ।। सोलहवी शताब्दी में लगभग 1528-29 में  बाबर के आदेश पर उसके आर्मी जनरल मीर बाकी के द्वारा राम जन्म भूमि के स्थान पर मस्जिद निर्माण से ही इस विवाद का जन्म हुआ ।।प्रश्न उठता है कि तब किसी हिन्दूओ ने इस पर अपना विरोध क्यों नही जताया ? इसका जवाब हमें इतिहास के मुगल काल के उन पृष्ठो पर प्राप्त होगा जहां धार्मिक यात्राओं पर जजिया जैसे करों का उल्लेख है , यह पर्याप्त है कि जब दूसरे धर्म के व्यक्ति को अपने ही धार्मिक स्थल के दर्शन मात्र के लिए कर का भुगतान करना पड़ रहा हो वहां पर, राजा के समक्ष अपना विरोध जताना असम्भव सा लगता है, फिर भी भारत की भूमि में ऐसे वीर जरुर हुए होंगे जिन्होंने विरोध दर्ज कराया होगा किन्तु हो सकता उन्हें इतिहास के पृष्ठों में स्थान नही दिया गया हो ।।
मस्जिद निर्माण के बाद , मस्जिद के अन्दर मुस्लिम इबादत करते थे जबकि मस्जिद के बाहर बने चबूतरे पर हिन्दू पूजा , पाठ भजन कीर्तन करते थे , इसी चबूतरे को राम चबूतरा कहा जाता है ।।
समय व्यतीत हुआ और भारत में मुगल काल की जड़ें कमजोर होती गयी धीरे धीरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत का वर्चस्व बढ़ता चला गया ।।वर्ष 1853 में राम जन्म भूमि स्थान पर दोनो पक्षों में पूजा ,पाठ को लेकर विवाद हुआ , जिसकी वजह से दोनो पक्षों के बीच  स्थानीय दंगे भी हुए ।।ब्रिटिश हुकूमत ने राम चबूतरे और मस्जिद के बीच में एक दीवार खड़ी करवाकर झगड़े को कुछ समय तक टालने का प्रयास किया ।।वर्ष 1885 में महंत रघुवर दास ने फैजाबाद कोर्ट में,  राम चबूतरे पर मन्दिर निर्माण के लिए याचिका दायर की , परन्तु कोर्ट ने मन्दिर निर्माण की अनुमति नहीं दी ।।
इस तरह ब्रिटिश हुकूमत काल के दौरान भी अनेकों प्रयास राम मन्दिर निर्माण को लेकर किये गये किन्तु वह सभी असफल रहे और असफल हो भी क्यूं ना एक गुलाम देश के वासियों की भावनाओं की कद्र हुकूमत की सरकार में नगण्य होती है ।।
अनेकों स्वतन्त्रता सेनानियों , अगणित क्रान्तिकारियो के बलिदान के कारण अंततोगत्वा भारत को आजादी प्राप्त हुई ।। देश की आजादी के बाद वर्ष  1948 में  अयोध्या में उपचुनाव हुए ।। कांग्रेस से अलग होकर समाजवादी नेता आचार्य नरेन्द्र देव ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा वहीं कांग्रेस ने नरेन्द्र देव के खिलाफ राघवदास को प्रत्याशी बनाया और इसी चुनाव में पहली बार राम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण को एक चुनावी मुद्दे के तौर पर प्रचारित किया गया और यही से शुरू हुई राम मन्दिर निर्माण की राजनैतिक यात्रा ।।
रघुवर दास के उप चुनाव में विजयी होने से साधु संतों का मनोबल काफी हद तक बढ़ चुका था और राम मन्दिर निर्माण के सपने को साकार करने में और अधिक गति से प्रयास करने लगे ।।
22-23 दिसम्बर 1949  की रात को मस्जिद के केन्द्र बिन्दु में राम लला की मूर्ति मिलने की घटना से अयोध्या में हड़कंप मच गया ।। इस घटना को लेकर  कई तरह की दंतक कथाये प्रसारित हुई किंतु उस समय मौजूद पुलिसकर्मी के बयान के अनुसार वहां पर एक तेज प्रकाश हुआ और वहां पर राम भगवान बाल रुप में दिखाई दिये ।।तत्कालीन जिलाधिकारी के० के० नायर के संज्ञान में यह बात जब आई तो उन्होंने वहां से मूर्तियां न हटवाने का फैसला लिया जिसका कारण उन्होंने मूर्तियों का वहां से हटाने पर दंगे भड़क सकते हैं , स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है , बताया ।।जिलाधिकारी के० के० नायर एवं सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह पर आर एस एस के होने के आरोप भी लगे।।
हालांकि बाद में के० के ० नायर अयोध्या के निकट कैसरगंज से जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़ें और जीते ।।जब वहां मूर्तियां मिलने की घटना घटित हुई तो राम चबूतरे पर पूजा अर्चना करने वाले महंत रामचन्द्र दास ने वर्ष 1950 में स्थानीय कोर्ट में मूर्तियों के स्थान पर पूजा अर्चना करने की अनुमति मांगी ।।जिस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों को विवादित परिसर में जाने पर रोक लगा दी ।।
वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़े द्वारा एक केस फाइल किया गया जिसमें विवादित स्थल को उन्हे देने की बात कही ।।
वर्ष 1961 में वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर मूर्तियां हटाने , हिन्दूओ द्वारा की जा रही पूजा अर्चना को रोकने के साथ साथ के जमीन पर अपना मालिकाना हक होने को लेकर केस फाइल किया  ।।
लगभग 15-20 साल इसी तरह केस , छुटपुट घटनायें , होती रही ।।परन्तु 80  के दशक आते-आते राम मन्दिर निर्माण आन्दोलन ने रफ्तार पकड़ ली थी ।। 80 के दशक में यह मुद्दा अब राजनीति के  राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुका था ।।
वर्ष 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने धर्म संसद बुलाई जिसमें अयोध्या के साथ साथ काशी एवं मथुरा की मुक्ति को एक राजनैतिक आन्दोलन बनाने पर सहमति बनी ।।
1986 के शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का आदेश बदलने को लेकर तत्कालीन सरकार पर तुष्टिकरण के गम्भीर आरोप लगे ।।ऐसा कहा जाता है कि इस आरोप से पार पाने के लिए सत्ता दल ने राम मन्दिर के ताले खुलवा दिए जिसका दूरदर्शन पर ब्राड कास्ट भी हुआ ।।इस घटना के बाद जहां एक तरफ बाबरी एक्शन कमेटी का गठन हुआ वहीं दूसरी ओर राम मन्दिर निर्माण के लिए प्रयासरत संगठनों ने कार सेवा (मन्दिर निर्माण में सहयोग )  करने के लिए सम्पूर्ण देश में बिगुल फूंक दिया ।।कार सेवा के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने सम्पूर्ण देश में एक ईंट राम के लिए , का व्यापक अभियान चलाया जिसके तहत बहुत बड़ी संख्या में राम के नाम लिखी ईटे अयोध्या में एकत्रित हुई ।।राम जानकी यात्रा के संचालन की जिम्मेदारी बजरंग दल को सौंपी गयी ।। बजरंग दल , विश्व हिन्दू परिषद की यूथ विंग है ।।वर्ष 1989 में उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने अयोध्या केस से जुड़े सभी मामलों की एक साथ सुनवाई करने के आदेश दिया साथ ही साथ जब तक विवाद सुलझ न जाए तब तक विवादित परिसर की यथास्थिति बनी रहने का भी आदेश दिया ।।
नवम्बर 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने शिलान्यास कार्यक्रम के लिए कांग्रेस सरकार से आश्वासन मांगा , यह शिलान्यास कार्यक्रम विवादित परिसर से थोड़ा सा हटकर था।। कांग्रेस सरकार ने स्वीकृति प्रदान कर दी,  उन दिनों राम जन्म भूमि का मुद्दा अपनी चरम सीमा पर था ।। यही कारण था 1989 में राजीव गांधी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत के लिए अयोध्या को चुना था।।इन सबके बावजूद कांग्रेस  सत्ता से हाथ धो बैठी वही 1984 में 2 सीटों पर जीतने वाली भाजपा राम मंदिर आंदोलन से जुड़कर 1989 के चुनाव में 85 सीटों पर पहुंच गई।। भाजपा एवं अन्य दलों  के समर्थन से वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने ।। हालांकि वी• पी सिंह पहले कांग्रेस सरकार में ही मंत्री थे किन्तु उन्होंने कुछ समय पहले इस्तीफा दे दिया था ।। यह देश की पहली सरकार थी जो कि दक्षिण पंथी एवं वामपंथी दोनों के समर्थन से सरकार बनी थी ।।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सितंबर 1990 में राम मन्दिर के लिए रथ यात्रा प्रारंभ की ।। यह यात्रा सोमनाथ से अयोध्या (लगभग 10,000किमी) तक थी।। रथ यात्रा से लोग भावनात्मक रूप से जुड़े ,जहां जहां से रथ यात्रा निकली लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और भव्य स्वागत व सहयोग किया ।।
बिहार में उस समय लालू यादव की सरकार थी और  23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर (बिहार )में यात्रा  रुकवा दी गयी और  आडवाणी को हिरासत में ले लिया गया ।।30 अक्टूबर को यात्रा का समापन होना था अतः भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे उस समय कि तत्कालीन सरकार के मुखिया ने पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था , जिसमें भारी संख्या में कारसेवकों की मौत हुई ।।कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से कारसेवा के लिए  चलकर आये कोठारी बन्धुओ द्वारा मस्जिद पर भगवा झण्डा फहराया गया , किन्तु राम मन्दिर आन्दोलन में उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी ।।प्राणो की आहुति के साथ ही इन दोनों बन्धुओ का नाम राम मन्दिर निर्माण के लिए सदा के लिए जुड़ गया ।।
आडवाणी की रथ यात्रा रोके जाने से भाजपा ने केन्द्र सरकार को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी , और फिर कांग्रेस के समर्थन से देश के नये प्रधानमंत्री बने चन्द्रशेखर ।।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में 1991  में भाजपा की सरकार बनी ।।  मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन को अधिग्रहण कर लिया और वह राम जन्मभूमि न्यास (ट्रस्ट) को सौंप दिया।।
जुलाई 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी ने दोनों पक्षों को वार्ता के लिए बुलाया।। यह  पहला अवसर था जब राम मंदिर निर्माण एवं बाबरी मस्जिद को लेकर किसी वार्ता का आयोजन हुआ था परंतु वार्ता असफल हुई ।।
30 अक्टूबर 1992 को विश्व हिंदू परिषद ने पुनः धर्म संसद बुलाई और कार सेवा के लिए 6 दिसंबर 1992 की तारीख को सुनिश्चित किया।।
सूबे के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी ने पूर्व ही प्रशासन को आदेश दे दिया था कि कारसेवकों पर किसी भी कीमत पर गोली नहीं चलाई जाएगी।। अतः कारसेवकों का मनोबल उच्च स्तल पर था ।।6 दिसंबर 1992 को विश्व हिंदू परिषद एवं भाजपा के कई वरिष्ठ नेता ( अशोक सिंघल , लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी ,विनय कटियार,  उमा भारती ,  आदि) सभी अयोध्या पहुंचे ।।सभी ने उपस्थित जन समूह को सम्बोधित किया , उसी समय कार सेवको की भीड़ ने उग्र रूप अपना लिया और  बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया ।।कल्याण सिंह ने अपनी जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया ।। । कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के नाते , चूंकि न्यायालय में ढांचा की सुरक्षा करने का हलफनामा दे रखा था अतः कोर्ट के आदेश की अवमानना के कारण कल्याण सिंह  को जेल भी जाना पड़ा।।बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण देश भर में दंगे हुए ।।मुंबई में सबसे ज्यादा दंगे हुए ।।भारत के साथ-साथ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में भी दंगे भड़के जिसमें हिंदुओं के कई  धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया ।1993 में हुए सीरियल ब्लास्ट को इसी घटना से जोड़कर देखा जाता है।।मस्जिद ढहाने के कारणों को जानने के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया ।। जिसकी रिपोर्ट आने में 17 साल लग गए जून 2009 में रिपोर्ट आई जिसमें आडवाणी ,जोशी,  वाजपेई समेत 68 लोगों को दोषी पाया गया ।।
वर्ष 2003 में कोर्ट ने पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया कि वह ऐतिहासिक तौर पर यह पता लगाएं कि वहां मंदिर था कि नहीं ।।अगस्त 2003 में पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया की वहां कुछ खम्भे  मिले हैं जिन पर  हिंदू धर्म से जुड़े हुए कुछ प्रतीक चिन्ह बने हुए हैं , परंतु पुरातत्व विभाग यह कहने से बच गया कि वहां पर राम मंदिर ही था।।इस जगह का सर्वप्रथम सर्वेक्षण  1862-63 में ए० ई० कनिंघम ने किया था हालांकि उनका मकसद बौद्ध स्थलों को फिर से पता लगाना था ।। कनिंघम ने यह माना था कि वर्तमान अयोध्या रामायण काल की ही अयोध्या है।।कई वर्षों तक चली  उच्च न्यायालय में सुनवाई के पश्चात 30 सितंबर 2010 को ऐतिहासिक अयोध्या मामले में अपना फैसला सुनाया ।। जिसमें विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का निर्देश दिया।। केंद्रीय स्थल को राम जन्मभूमि न्यास को ,  सीता रसोई एवं राम चबूतरे को निर्मोही अखाड़े को वहीं बाकी बची जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपने का आदेश दिया ।।परन्तु उच्च न्यायालय के इस फैसले से तीनों ही पक्ष सन्तुष्ट नहीं हुए और राम जन्म भूमि स्थल के सम्पूर्ण प्रांगण  पर मालिकाना हक किसी एक का ही हो , इस फैसले के निर्णय के लिए समस्त पक्षो द्वारा  यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया ।।
कई वर्षों तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लम्बित रहा सरकार की भी कोई अत्यंत रुचि न होने का कारण इस मामले पर कई वर्षों तक सुनवाई भी नहीं हो पायी ।।
वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार आ जाने से राम भक्तों में एक बार फिर राम मन्दिर निर्माण की आशा की किरण जागृत हुई क्योंकि भाजपा के घोषणा-पत्र में इस बार भी राम मन्दिर ने जगह बनाई हुई थी ।।पूर्व की भाजपा सरकार में राम मन्दिर निर्माण ना बन पाने का कारण भाजपा नेताओं ने सदन में संख्या बल कम होंने को बताया था , परन्तु इस बार भाजपा की अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी ।।राम मन्दिर निर्माण का सपना संजोए बैठे लाखों लाख साधू , भक्त , अनुयायी  आदि सभी ने अपने अपने स्तर पर राम मन्दिर निर्माण के लिए आवाज बुलंद करना प्रारम्भ कर दी थी ।।इधर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार भी बन गयी और मुख्यमंत्री पद सम्भाला योगी आदित्यनाथ जी ने।। चूंकि योगी आदित्यनाथ जी राम मन्दिर निर्माण को लेकर समय समय पर अपनी बात प्रमुखता से रखते रहे थे और राम मन्दिर निर्माण के प्रबल पक्षधरो में से एक थे अतःसत्ता की गलियारो में एक बार फिर राम मन्दिर निर्माण की चर्चा का बाजार चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था ।। ऐसा लगता है कि गुरु महंत अवैद्यनाथ नाथ के भव्य राम मन्दिर के सपने को साकार करने के लिए, गुरु का आशीर्वाद योगी आदित्यनाथ को प्राप्त हुआ जिसके फलस्वरूप वह सूबे के मुख्यमंत्री बने।।
यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ जी ने मुख्यमंत्री पद सम्भालते ही प्रत्येक वर्ष अयोध्या में दीपावली के पावन पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाने का फैसला लिया ।। प्रति वर्ष अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दीपोत्सव का एक दिव्य एवं भव्य कार्यक्रम रखा जाता है जिसमें रिकार्ड संख्या में सरयू नदी के तट पर दीप प्रज्जवलित किये जाते है ।।

आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस के लिए तारीखो का सिलसिला जारी हो गया ।। 
जस्टिश दीपक मिश्रा जी ने ऐतिहासिक अयोध्या मामले में सुनवाई सुनिश्चित हो इस पर ध्यान दिया और वर्षो से लम्बित चले आ रहे अयोध्या मामले को सुलझाने को लेकर सार्थक प्रयास किये परन्तु अभी राम मन्दिर निर्माण के लिए न्याय द्वारा अधिकृत वह क्षण आया नहीं था ।।ईश्वर ने इस फैसले को अन्तिम रूप देने के लिए किसी और को ही चुन रखा था ।।देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बने रंजन गोगोई जी ।।
वर्ष 2019 के प्रारम्भ से सुनवाई का सिलसिला जारी हुआ परन्तु कुछ कारण ऐसे बनते गये जिससे वह टलता गया ।। अन्ततोगत्वा सितंबर 2019 से 40 दिन लगातार सुनवाई चली ।। पांच जजों की पीठ ने सभी पक्षों को बारी बारी से अपनी बात रखने का पर्याप्त समय दिया ।।समस्त सुनवाई सम्पूर्ण होने के पश्चात अक्टूबर माह में फैसले को सुरक्षित रख लिया गया और फैसला सुनाने के लिए 9 नवम्बर की तारीख को चुना गया ।।
समस्त देशवासियों को इस ऐतिहासिक फैसले के निर्णय का बहुत ही बेसब्री से इंतजार था ।।देश के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री आदि समस्त जिम्मेदार लोगों ने देश की जनता से अपील की कि फैसले को जीत हार से जोड़ कर ना देखे और आपसी सौहार्द को बनाये रखें क्योकि दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जो अपनी विविधता में एकता के लिए पहचाना जाता है ।।
आख़िरकार वो घड़ी आ ही गयी जिसका सदियों से इंतजार था , समस्त न्यूज चैनलों ने लाइव प्रसारण चलाया ।।पांच जजों की पीठ के मुखिया मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई जी ने फैसले को पढ़ा जिसमें शिया वक्फ बोर्ड एवं निर्मोही अखाड़े के पक्ष को नकार दिया गया ।।न्यायालय ने यह माना कि यह तय है कि बाबरी मस्जिद खाली स्थान पर नहीं बनायी गयी थी और ना ही जमीन के नीचे कोई इस्लामिक स्ट्रक्चर पाये गये है ।।उस प्रांगण के आसपास कई वर्षों से हिन्दू पूजा पाठ करते चले आ रहे हैं यह भी सच है ।।
अतः समस्त पक्षो को सुनने के पश्चात ,  विवादित स्थल का सम्पूर्ण मालिकाना हक राम जन्म भूमि न्यास को दिया जाता है ।।
केन्द्र सरकार तीन माह के अन्दर अन्दर एक ट्रस्ट बनाये जो कि राम मन्दिर का निर्माण करेगा ।।किंतु बाबरी मस्जिद विध्वंस एक गैरकानूनी कृत है अतः 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रदान की जाए ।।। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए केन्द्र सरकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं राम में आस्था रखने वालों का सम्मान करते हुए , समय सीमा के अन्दर ट्रस्ट का गठन कर दिया ।। यह घोषणा देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वयं लोकसभा में की ।। केन्द्र सरकार द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए न्यायालय में अपना पक्ष दृढ़ता से रखने वाले के परासरण जी को ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है जो कि प्रसंशनीय है ।।
सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को राम जन्मभूमि स्थान से 25 किलोमीटर दूर धुन्नीपुर गांव में 5 एकड़ जमीन को भी उपलब्ध कराया ।।सरकार द्वारा गठित किये गये ट्रस्ट का नाम “राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र” रखा गया है ।।

सरकार ने यह तय किया कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में १५ ट्रस्टी होंगे, जिनमें से एक ट्रस्टी हमेशा दलित समाज से रहेगा। 

ट्रस्ट के नियमों के मुताबिक, इसमें 10 स्थायी सदस्य हैं, जिन्हें वोटिंग का अधिकार होगा। बाकी के पांच सदस्यों को वोटिंग का अधिकार नहीं है। लगभग सभी सदस्यों के हिन्दू धर्म में आस्था रखने की अनिवार्यता रखी गयी है ।।

 ट्रस्ट में  सबसे पहला नाम वरिष्ठ वकील के. पराशरण जी का है। पराशरण ने अयोध्या केस में लंबे समय से हिंदू पक्ष की पैरवी की। आखिर तक चली सुनवाई में भी पराशरण खुद बहस करते थे। रामलला के पक्ष में फैसला लाने में उनका अहम योगदान रहा है। राम मंदिर केस के दौरान उन्होंने स्कन्ध पुराण के श्लोकों का जिक्र करके राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की थी। ट्रस्ट के गठन के बाद ऐडवोकेट के पराशरण को राम मंदिर की जमीन का कब्जा सौंपा गया है।
ट्रस्ट में आध्यात्मिक जगत से जुड़े हुए पांच लोगों को रखा गया है जिसमें पहला नाम , जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज , दूसरे ,  जगद्गुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थ जी महाराज (उड़प्पी से) , तीसरे युगपुरुष परमानंद जी महाराज (हरिद्वार से) , चौथे स्वामी गोविंद देव गिरी महाराज पूणे से , महंत दिनेन्द्र दास (निर्मोही अखाड़े से)
इसी में आगे मोहन प्रताप मिश्रा जी (अयोध्या राज परिवार से ) ,अनिल मिश्रा (संघ से जुड़े हैं ,राम मन्दिर आन्दोलन में विनय कटियार से जुड़े रहे , पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर भी है) , कामेश्वर चौपाल ( इन्होंने ही वर्ष 1989 में शिलान्यास कार्यक्रम में ईंट रखी थी ), ।।इसके साथ ही साथ केंद्र सरकार का एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी,  एक राज्य सरकार का आईएएस अधिकारी एवं जिलाधिकारी अयोध्या भी ट्रस्टी सदस्यो में शामिल होंगे।। राम मंदिर कॉम्प्लेक्स से जुड़े मामलों के प्रशासनिक और विकास की समिति का चेयरमैन भी चुना जायेगा ।। ट्रस्ट की हुई प्रथम बैठक में ,  ट्रस्ट के प्रथम चेयरमैन के पद पर महंत नृत्य गोपाल दास का चुनाव हुआ है वही महासचिव के पद पर चंपत राय को चुना गया है।।

कई बैठकों के बाद 5 अगस्त 2020 को राम मन्दिर निर्माण की भूमि पूजन के लिए चुना गया , जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी आमंत्रित किया गया है ज्ञात हो कि वर्तमान प्रधानमंत्री वर्ष  1992 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में कश्मीर से धारा 370 को खत्म करने के लिए निकाली गई तिरंगा यात्रा के संयोजक रूप में अयोध्या थे। तब उन्होंने  रामलाल के दर्शन करने के बाद कहा था कि अब राम मंदिर बनने पर ही अयोध्या आएंगे।प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कही गई वो बात 5 अगस्त को सच साबित होगी ।।
राम मन्दिर का निर्माण नागर शैली में किया जायेगा ।।सर्वप्रथम राममन्दिर का डिजाइन वर्ष 1989 में गुजरात के चन्द्रकांत सोमपुरा द्वारा बनाया गया था ।। वर्तमान में भी चन्द्रकांत सोमपुरा एवं उनके बेटे निखिल सोमपुरा मुख्य शिल्पकार होंगे ।। चन्द्रकांत सोमपुरा जी के पिता जी ने ही गुजरात के सोमनाथ मन्दिर को डिजाइन किया था ।। सोमपुरा जी के परिवार में  कई पीढ़ियों से शिल्पकारी का कार्य होता आया है ।।  वर्तमान में इस डिजाइन में काफी बदलाव किये गये है , पहले मन्दिर में तीन गुंबद थे जो अब पांच होंगे ।। पहले प्रस्तावित माडल में मन्दिर दो मंजिला था जो अब तीन मंजिला हो गया है जिससे मन्दिर की ऊंचाई 141 फीट से बढ़कर 161 फीट होगी ।।मन्दिर निर्माण में वास्तुशास्त्र का विशेष ध्यान रखा जाएगा ।। मन्दिर निर्माण के कार्य को पूरा करने के लिए लगभग साढ़े तीन वर्ष लगेंगे ऐसा अनुमानित है ।।राम मन्दिर भूमि पूजन को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उत्साहित हैं उन्होंने अयोध्या को त्रेता युग की तरह संवारने का प्रयास किया है ।।भूमि पूजन के लिए अयोध्या दुल्हन की तरह तैयार है ।।अध्यात्मिक , सामाजिक , राजनैतिक क्षेत्रो से जुड़े हुए तमाम अतिथियों के स्वागत के लिए अयोध्या तैयार है ।।सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के लिए राम मन्दिर निर्माण का अवसर बहुत ही भावनात्मक है क्योंकि मुख्यमंत्री जी के पूज्य  गुरुदेव ब्रह्मलीन   गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज एवं पूज्य दादा गुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज दोनों ही पूज्य संतों ने राम मन्दिर निर्माण के लिए चले संघर्षों में अपनी आहुति प्रदान की  है और पूज्य गुरुदेवों का स्वप्न था की राम जन्म भूमि पर एक दिव्य एवं भव्य मन्दिर का निर्माण हो , और जब यह अवसर आया है तो ईश्वर की कृपा के कारण सूबे के मुख्यमंत्री का पदभार योगी आदित्यनाथ जी के पास ही है , इसे गुरु का आशीर्वाद ही समझा जा सकता है ।।

देश विदेश में उपस्थित असंख्य भक्तो के अराध्य श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण से , उनके ह्रदय की अंतरात्मा में जो परमानंद की अनुभूति होगी उसे शब्दो में व्याख्यित नहीं किया जा सकता ।।
राम मन्दिर निर्माण आन्दोलन से जुड़े प्रमुख नारों में से एक – “राम लला हम आयेंगे , मन्दिर वहीं बनायेंगे” को सम्पूर्णता 5 अगस्त 2020 को प्राप्त हो जायेगी ।।
5 अगस्त 2020 का दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा , साथ ही  सनातन संस्कृति का हिस्सा भी बनेगा ।।आने वाली पीढ़ी को ,राम मन्दिर निर्माण की यात्रा को पढ़ने के लिए इतिहास के पृष्ठों को खंगालना पड़ेगा ।।
रामचरितमानस में एक चौपाई है , “राम काजु कीन्हें,  बिनु मोहि कहां विश्राम “इस चौपाई को बजरंगी संकल्प की संज्ञा दी जाती है , जिस प्रकार हनुमान जी महाराज सतत राम की सेवा/कार्य में लगे रहते , उसी प्रकार मुगल काल से लेकर वर्ष 2020 तक राम मन्दिर निर्माण के लिए संघर्षरत  समस्त साधू संत , राजनैतिक , सामाजिक , धार्मिक आदि सभी व्यक्तियो को कलयुग में राम की बजरंगी सेना की संज्ञा दी जा सकती है ।।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है – “हिन्दीयो के दिल में है मोहब्बत राम की , मिट नहीं सकती यहां से हुकूमत राम की”

अभिनव दीक्षितबांगरमऊ उन्नाव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

Inspiring India- from Big to Great

A book that can inspire 1.5 billion Indian hearts What do we call a nation that seamlessly blends millennia-old...

All India Ulema Board offers support to Maha Vikas Aghadi with few ‘Anti Hindu’ and ‘Anti constitution’ Conditions

Amid the high-decibel campaign for upcoming Maharashtra Assembly polls, a letter by the All India Ulema Board to...

Canada ends Student Direct Stream visa programme: How this move can impact Indian students

Amid an ongoing diplomatic standoff between India and Canada, Justin Trudeau's government suspended its popular Student Direct Stream...

What Trump’s Win means for India and the World

Donald Trump is poised to become only the second US president to secure a non-consecutive second term, following...