दुष्यंत दवे एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, और वह पिछले 30 वर्षों से लगातार सर्वोच्च न्यायालय में हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इतने वर्षों तक काम करने के बाद आपने किसी ख्याति प्राप्त मुकदमे में उनको पैरवी करते हुए नहीं देखा होगा. इसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके रोमिला थापर को कुछ घंटों में ही जमानत दिलवाई थी. इस बात को यह भूल गया होगा। जनता सब याद रखती है. वह मुकदमा नक्सलियों के साथ जुड़ा हुआ था. देश की अखंडता के लिए खतरा भी था.
मेरी जानकारी के अनुसार उनकी प्रष्ठ भूमि कांग्रेसी है. स्वाभाविक है, कि उन्होंने कांग्रेस के इशारे पर ही ऐसा किया होगा. उनके सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को पत्र लिखने का मतलब सिर्फ अर्णव गोस्वामी के मुकदमे की लिस्टिंग रुकवाना था या कम से कम मुकदमे के परिणाम को प्रभावित करना था?
अपने पत्र में उन्होंने पूंछा था कि अर्णव गोस्वामी के मुकदमे की सुनवाई असाधारण रूप से इतनी जल्दी क्यों की जा रही है? उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम जो एक बहुत सम्माननीय एडवोकेट भी हैं, के मामले में न्यायालय ने इतनी जल्दी नहीं की गयी थी और उन्हें कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा था. उन्होंने कहा कि जब तक कोई ऐसा नियम नहीं बना लिया जाता है, कि आवश्यक मामलों की लिस्टिंग कैसे की जाए और 10 नवंबर तक लंबित सभी महत्वपूर्ण मामले जिनकी शीघ्र लिस्टिंग की आवश्यकता है, निपटा न ली जाए तब तक अर्णव गोस्वामी के मामले को नहीं सुना जाए.
स्वाभाविक है उन्होंने एक असफल प्रयास किया कि अर्णव गोस्वामी के मामले को इतनी शीघ्रता से सुना ना जाए और उन्हें जमानत न मिलने पाए . ऐसा करते हुए उन्होंने अपरोक्ष रूप से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी कटघरे में खड़ा कर दिया और पूरे सर्वोच्च न्यायालय पर कीचड़ उछाल दिया. जिसके लिए उन्हें अत्यधिक आलोचना का सामना करना पड़ा.
बाद में अर्नब गोस्वामी की पत्नी ने सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को पत्र लिखकर दुष्यंत दवे की शिकायत की और उनकी मंशा पर सवाल उठाया था. कई अन्य वरिष्ठ वकीलों ने भी दुष्यंत दवे की इस कृत्य की निंदा की.
कपिल सिब्बल जो सर्वोच्च न्यायालय में अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए थे, उन्होंने अर्नब गोस्वामी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामले में इतनी शीघ्रता ठीक नहीं है, और यह गलत उदाहरण बनेगा. अब जबकि सेशन कोर्ट को कल ही सुनवाई करनी है और उसके लिए 4 दिन का समय हाईकोर्ट ने दिया है, तो जमानत की सुनवाई के मामले को सेशन कोर्ट पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए.
अर्नब गोस्वामी के मामले को केरल के एक कथित पत्रकार, जिसकी पीएफआई से सम्बद्धता और हाथरस कांड के समय दंगा फैलाने के आरोप में उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था, के मामले से जोड़ा और कहा कि उस पत्रकार के मामले में न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया था.
आजकल वह समय आ गया है, जब केवल मुर्ख ही मूर्खता की बात नहीं करते बल्कि बुद्धिमान व्यक्ति भी कई बार जान बूझकर मूर्खता की बात करता है. दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल दोनों ने ऐसा ही किया है, यह जानते हुए भी कि वे लोग जो कह रहे हैं वह न तो सही है और न ही उचित है, और सर्वोच्च न्यायालय उनकी बात स्वीकार नहीं करेगा फिर भी अपने आकाओं को खुश करने के लिए उन्हें ऐसा कहना ही पड़ा.
अर्नब की न्यायिक अभिरक्षा में हिरासत १८ नवम्बर तक थी, ८ दिन वह जेल में रह चुका था, ६ दिन और रहे इसके लिए पूरा ड्रामा चल रहा था.
अंत में सत्य की असत्य पर विजय हुई, और कोर्ट ने अरनाब को जेल से छोड़ दिया.