Home News नई शिक्षा नीति : सशक्त भारत की ओर एक और कदम

नई शिक्षा नीति : सशक्त भारत की ओर एक और कदम

0
New Education Policy
Image source - DNA

एक समय था जब भारत की पहचान पूरी दुनिया में उसके शिक्षा के अद्वितीय केन्द्रो से होती थी । दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय शारदा विद्या पीठ इसी धरा पर सुशोभित हुआ । तक्षशिला जैसे महाविद्यालय जहां पर 40 से अधिक विषयों का अध्ययन होता था, नालंदा जैसे विश्वविद्यालय जहां दुनिया के तमाम देशों से विद्यार्थी आकर अध्ययन करते थे। पांचवीं – छठी सदी में भी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों के लगभग 10, 000 से अधिक छात्र अध्ययनरत थे।ऐसा कहा जाता है कि किसी भी देश की शिक्षा नीति उस देश का भविष्य तय करती है। देश की शिक्षा नीति में पढ़ाए जा रहे पाठ्यक्रम से उस देश की संस्कृति का संरक्षण का मार्ग प्रशस्त होता है ।

ये तो ठीक बात है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था और उसकी संस्कृति का जो क्षरण हुआ उसका कारण भारत का शताब्दियों तक गुलाम रहना है। किन्तु क्या कारण रहा कि भारत ने अपनी आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई बड़े बदलाव नहीं किये ? यह भारत की सरकाऱो का आत्मचिंतन का विषय है।

बीते बुधवार को करीब 34 साल बाद,  देश मे बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई। देश की आजादी के बाद यह तीसरा मौका है जब देश में नई शिक्षा नीति लागू हुई है। सर्वप्रथम 1968 में इंदिरा गांधी की सरकार में, दोबारा 1986 में राजीव गांधी की सरकार में और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की है।

आजादी के बाद की सरकारों ने शिक्षा व्यवस्था पर कितना ध्यान दिया इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1964 में कोठारी आयोग ने शिक्षा नीति पर अपनी रिपोर्ट पेश की तो उसमें कहा था कि जीडीपी का 6% हिस्सा शिक्षा पर खर्च होना चाहिए, परंतु पूर्वर्ती सरकारों में से किसी ने भी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण  विभाग पर जीडीपी का 6% खर्च करने के लक्ष्य को हासिल करने की चेष्टा नहीं की, वहीं अगर दूसरे देशों की तुलना करें तो पायेंगे कि भूटान जैसे छोटे देश भी अपनी जीडीपी का लगभग 7.5% , वही जिम्बाब्वे एवं स्वीडन 7% दुनिया में सबसे बेहतरीन शिक्षा प्रणाली के लिए जाना जाने जाना देश फिनलैंड भी अपनी जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च करते हैं।

वर्ष 1985 में शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया गया था । वर्ष 2020 की नई शिक्षा नीति में अब पुनः नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय ही कर दिया गया है । नई शिक्षा नीति के लिएटीएसआर सुब्रमण्यम एवं डॉक्टर के कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया गया था। नई शिक्षा नीति में कुछ प्रमुख बदलाव किए गए हैं जो निम्न है। देश में लागू 10+2  के प्रारुप  को बदलकर 5+ 3+ 3 + 4 कर दिया गया जिसमें प्रथम 5 वर्षों को फाउंडेशन स्टेज अर्थात मजबूत नींव तैयार करने के लिए रखा गया वही अगले 3 साल यानी कक्षा 3 से 5 की पढ़ाई इस प्रकार होगी जिसमें बच्चों के भविष्य की तैयारी की जाएगी इसी समय छात्रों को  विज्ञान,  गणित,  सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों से परिचय कराया जायेगा ।। अगले 3 साल को मध्य स्तर कहां गया है। आधुनिकरण के डिजिटल युग को ध्यान में रखते हुए अब कक्षा 6 से ही छात्रों को कंप्यूटर कोडिंग के बारे में जानकारी दी जाएगी। कक्षा 9 से 12 तक की परीक्षाओं को अब सेमेस्टर के रूप में कराने का प्रावधान किया गया है। सरकार ने नई शिक्षा नीति में पांचवी तक की पढ़ाई को मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा में ही कराने का सुझाव दिया है, अब अंग्रेजी में पढ़ाई की अनिवार्यता नहीं रहेगी। नई शिक्षा नीति में 12वीं कक्षा के बाद कॉलेज में एडमिशन के लिए कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट का प्रावधान किया है जिसके तहत उन छात्रों को फायदा मिलेगा जिनके नंबर 12वीं कक्षा में कम आयेंगे। ग्रेजुएशन के दौरान किसी कारणवश बीच में ही पढ़ाई रुक जाने से होने वाले नुक़सान का हल सरकार ने ढूंढ निकाला है और ग्रेजुएशन की पढ़ाई 1 वर्ष करने वाले को सर्टिफिकेट एवं 2 वर्ष करने वाले को डिप्लोमा एवं 3 वर्ष करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी। सरकार ने ग्रेजुएशन के चौथे वर्ष की शिक्षा को भी लागू किया है जिसे करने पर रिसर्च के साथ डिग्री दी जाएगी ‌।नई शिक्षा नीति में संस्कृत को एक  भाषा के तौर पर और अधिक बढ़ावा दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति में अगले दशक तक रोजगार परख शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा ।

जब भी किसी देश में कोई बड़ा बदलाव करना हो तो उसकी शिक्षा नीति में बदलाव करना चाहिए । परन्तु शिक्षा नीति बदलना यह सिर्फ प्राथमिक कदम है, बड़े बदलाव की सार्थकता के लिए सरकार को जमीनी स्तर पर नीति का क्रियान्वयन करना होगा

भारत में सरकार बहुत बड़े स्तर पर पैसा सिर्फ अध्यापकों के वेतन पर खर्च कर देती है वहीं बाकी देश मूलभूत सुविधाएं, लेब्रोटरी, शोध संस्थानों आदि पर खर्च अधिक करती है सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है ।

भारत सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति एक सराहनीय कदम है, यह देश में शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव ला सकती है परन्तु इसका क्रियान्वयन बहुत ही ईमानदारी से जमीन स्तर पर हो , क्योंकि भारत की शिक्षा बदहाली का हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश में 24 छात्रो पर एक अध्यापक है वहीं ब्रिक्स देशों में इसकी अपेक्षा कहीं अधिक है साथ ही साथ सरकारी विद्यालयों में खर्च हो रहे पैसे का दुरपयोग और हो रहे भृष्टाचार भी कम नहीं है जिस पर अंकुश लगाने की बेहद आवश्यकता है।

जैसा कि देश के प्रधानमंत्री भारत के 65 प्रतिशत युवा आबादी होने पर गर्व करते है परन्तु इस 65 प्रतिशत युवा आबादी का सम्पूर्ण लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जब यह आबादी शिक्षित हो ।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश की नई शिक्षा नीति पर प्रेस कांफ्रेंस के जरिए देश को संबोधित किया, जिसमें मोदी जी ने कहा यह शिक्षा नीति मात्र कागजों पर ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर क्रियान्वित होंगी ।।आगे उन्होंने कहा करीब तीन चार वर्षों के गहन मंथन के बाद शिक्षा नीति को लागू किया है, इस शिक्षा नीति से 21 वीं सदी की  भारत की नींव रखी जाएगी , यह नीति युवाओं को समय के हिसाब से तैयार करने वाली नीति है । नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को  ज्यादा से ज्यादा  अवसर मुहैया कराये जाने पर भी जोर दिया गया है । नई शिक्षा नीति भारत को सशक्त बनाने का कार्य करेगी , जिसको आने वाले कुछ वर्षों में देखा जा सकेगा ।

अभिनव दीक्षित

बांगरमऊ उन्नाव

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version