Home News “कारगिल – भारतीय सेना की पराक्रम गाथा”

“कारगिल – भारतीय सेना की पराक्रम गाथा”

1
Photo: India Today

भारत की नीति अपने पड़ोसी देशों से हमेशा बेहतर संबंध बनाने की रही। विवादों को द्विपक्षीय बातचीत के जरिये सुलझाने के हरसंभव प्रयास किये जाते रहे। इसी कड़ी में फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिल्ली-लाहौर बस यात्रा शुरू करने का निर्णय लिया और वो स्वयं बस में सवार होकर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मिलने लाहौर पहुँचे।
लेकिन हर बार की तरह इस बार भी पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंप ही दिया। जिस समय अटल नवाज़ की ये मुलाकात हो रही थी उसी समय तब पाकिस्तान आर्मी चीफ परवेज़ मुशर्रफ कुछ और ही षड्यंत्र रच रहे थे। ऐसा बताया जाता है कि मुशर्रफ के इस षड्यंत्र की भनक नवाज़ शरीफ़ को नहीं थी।
लाहौर बस यात्रा के कुछ ही महीनों बाद मई 1999 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के कारगिल इलाके की ऊँची पहाड़ियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया। शुरुआत में इस काम में आतंकवादियों को इस्तेमाल किया गया लेकिन पाकिस्तान की सेना भी धीरे से इसमें शामिल हो गई।


पाकिस्तान इस बात से इंकार करता रहा कि कारगिल में उसकी सेना है लेकिन जब सुबूत सामने आने लगे तो पाकिस्तान को मानना ही पड़ा कि कारगिल में आतंकवादियों के साथ साथ उनकी सेना भी शामिल थी।
कारगिल का युद्ध दुनिया के सबसे कठिनतम युध्दों में  से एक था क्योंकि शत्रु ऊपर पहाड़ियों पर मौजूद था जहाँ से उसे मैदानी इलाकों से मुकाबला कर रही भारतीय सेना पर हमले करना और उनके ऊपर नज़र रखना ज़्यादा आसान था। इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान की चाल थी कि भारत के नेशनल हाईवे नम्बर 1 को देश के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया जाए और उसे नेस्तनाबूद कर दिया जाए।

Photo: India Today

पहले के युद्धों में मुँह की खाने के बाद पाकिस्तान ने छद्म युध्द करने की योजना बनाई थी क्योंकि पाकिस्तान अच्छे से जानता था कि आमने सामने की लड़ाई में वो संसार के सबसे बहादुर, पराक्रमी सेना का मुकाबला नहीं कर सकता है। शुरू में तो पाकिस्तान अपने घुसपैठियों को जम्मू कश्मीर के लोगों का ही बताता रहा और इसे कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई का रंग देने की कोशिशें करता रहा। लेकिन धीरे धीरे ये सामने आने लगा कि घुसपैठियों के साथ साथ पाकिस्तान की फौज भी भारत पर छिपकर हमले कर रही है।
लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए एक एक करके पाकिस्तान द्वारा कब्जाई गई सभी चौकियों पर अपना तिरंगा फहरा ही दिया। भारतीय सेना ने इस अभियान को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया था। इस लड़ाई में भारत ने अपने 527 वीर सपूतों को खोया वहीं अपुष्ट खबरों के मुताबिक पाकिस्तान के 700 से भी ज़्यादा सैनिक इस लड़ाई में मारे गए।कारगिल की इस लड़ाई ने पूरी दुनिया को भारतीय जवानों के उस साहस,  पराक्रम से परिचय कराया जिसके लिए भारतीय सेना विश्वविख्यात है। मैदानी इलाकों में होने के बावजूद एक एक करके पहाड़ी इलाकों की चौकियों पर कब्जा कर लेने की भारतीय सेना की अदम्य इच्छाशक्ति, भारतीय सेना के युद्ध कौशल, देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देनेवाले भारतीय सपूतों का लोहा दुनिया ने माना। 

भारतीय वायुसेना ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया था और सबसे बड़ी चुनौती भारतीय वायुसेना के सामने ये थी कि उन्हें अपने लड़ाकू विमानों को बहुत ज़्यादा ऊँचाई से नहीं उड़ाना था और मात्र 18-20000 फ़ीट की ऊँचाई से ही अपने ऑपेरशन को अंजाम दिया और इसी कारण वो अपनी पूरी क्षमता के साथ लड़ने में असमर्थ थे। इसके लिए विमानों में कम बम रखे गए। पायलट्स को इतनी कम ऊँचाई पर उड़ते हुए हमले करने के लिये तुरत फुरत ट्रेनिंग दी गई। बावजूद इसके भारतीय सेना ने भी अपने शौर्य, सूझबूझ की मिसाल से देश को गौरवान्वित किया। भारतीय वायुसेना ने अपने ऑपेरशन का नाम “सफेद सागर” दिया था।
अपनी सेना की दुर्गति होते देख नवाज़ शरीफ़ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पास गुहार लगाने पहुँचे और उनसे मध्यस्थता की अपील की। लेकिन बिल क्लिंटन ने युध्द रोकने और पाकिस्तान को पीछे हटने की सलाह देकर किसी प्रकार की मध्यस्थता करने से इनकार कर दिया। अंततः 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने अंतिम चौकी पर भी अपना कब्जा जमा लिया और उस तरह विश्व का ये सबसे कठितनम युद्ध समाप्त हुआ। 


इसके बाद से 26 जुलाई को “विजय दिवस” के रूप में मनाने की शुरुआत की गई।
भारतीय सेना के वीर जवानों को इस अदम्य साहस और शौर्य के लिए चार परमवीर और 11 महावीर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इस लड़ाई में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले, देश का मस्तक ऊँचा करने वाले सभी वीरों को “विजय दिवस” पर देश नमन करता है और उनको हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version