Home ट्रूnicle हिंदी - संस्कृतम् श्री राम का अलौकिक रूप

श्री राम का अलौकिक रूप

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Shree Ram and Maa Sita
  1. सुर नर मुनि कोऊ नाहि जेहि  न मोह माया प्रबल |

     अस बिचारि  मन माहि भजिअ  महामाया पतिहि ||

                इन पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदासजी ने प्रभु श्री राम के शक्तिशाली मायावी रूप-स्वरुप का वर्णन किया है |  देवता ,ऋषि –मुनि तथा सभी मनुष्य प्रभु की माया से मोहित हो जाते हैं | ऐसा सोचकर हमें प्रभु राम की भक्ति में अपने आपको  लीन कर देना चाहिए |

2.  जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता |

    गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धुसुता प्रिय कंता ||

    पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई |

    जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह  सोई ||

                    गोस्वामी तुलसीदासजी ने इन पंक्तियों में भगवान श्री राम के सर्वव्यापी एवं अलौकिक रूप का वर्णन किया है |प्रभु श्री राम अविनाशी और सबके हृदय को असीम सुख प्रदान करने वाले हैं | ऐसे महाप्रभु श्री राम की कवि तुलसीदासजी ने जय जयकार की है | संसार से विरक्त अनेक ज्ञानी पुरुष रात-दिन इसीलिए प्रभु श्री राम का ध्यान करते हैं | ऐसे प्रभु की गोस्वामी तुलसीदासजी  बार –बार वंदना करते हैं | ऐसे प्रभु श्री राम के सच्चिदानंद स्वरुप का हमें निरंतर ध्यान करना चाहिए | सारे कष्टों से मुक्ति का एकमात्र यही उपाय है |

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मैंने नवोदय विद्यालय समिति में तीस वर्षो तक उपप्राचार्य के पद पर कार्य किया है | मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए और पीएच-डी की डिग्री प्राप्त की है | मेरी रूचि हिंदी धर्म ग्रंथों को पढ़ने तथा उनमें निहित जीवन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने और समाज के लोगों तक उन्हें पहुँचाने में है |

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