Home ट्रूnicle हिंदी - संस्कृतम् आधुनिककाल में श्रीरामचरितमानस का महत्त्व

आधुनिककाल में श्रीरामचरितमानस का महत्त्व

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Prabhu Shri Ram Charita Manas
  1.  1. भवानीशंकरौ   वन्दे  श्रध्दाविश्वासरुपिणौ  |

                             याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा स्वान्तःस्थमीश्वरमं |

         इस श्लोक में शिव-पार्वती की महिमा का वर्णन किया गया है | भगवान शंकर और माता  पार्वती ये दोनों श्रद्धा और विश्वास के प्रतिरूप हैं |इनकी कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति, वह चाहे कितना ही सिद्ध पुरुष हो, अपने हृदय में ईश्वर के रूप के दर्शन नहीं कर सकता | गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस श्लोक में शिव-पार्वती की प्रार्थना करते हुए उनकी महिमा का वर्णन किया है |

        कहने का अभिप्राय यह है कि ईश-वंदना के बिना इस चराचर जगत में कोई भी कार्य करना संभव नहीं है | अतः किसी भी कार्य को करने के पहले  हमें प्रभु का ध्यान अवश्य करना चाहिए | 

2. जो सुमिरत सिधि होई गन नायक करिबर बदन |

                          करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ||

                                                इन पंक्तियों में  प्रभु गणेशजी की वंदना की गई है जो गुणों की खान हैं,जिनका मुख हाथी के समान है, जो शुभ गुणों के भण्डार हैं और बुद्धि के धनी हैं | ऐसे श्रीगणेशजी के ध्यानमात्र से सभी मनोकामनाएं  पूरी हो जाती हैं |इसीलिए हम सभी लोगों को गणेशजी की वंदना करनी चाहिए |गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड के आरम्भ में ही गणेशजी की बार-बार वंदना की है |

3. सुनि समुझहि जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग |

                      लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग   ||                         

इन पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सज्जन लोगों का गुणगान  किया है | जो  लोग सज्जन लोगों की बातों को ध्यान से सुनते हैं और प्रेमपूर्वक उन बातोँ पर  मनन करके प्रसन्नता से अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं उन्हें इसी जीवन में  धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है | अतः हम सभी  लोगों को सज्जनों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए |              

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